गुवाहाटी। टेम्बा बावुमा की कप्तानी वाली वर्ल्ड टेस्ट चैंपियन साउथ अफ्रीका ने भारत आकर इतिहास रच दिया है. पिछले 25 सालों से भारत में टेस्ट सीरीज जीतने का इंतजार कर रही साउथ अफ्रीका को आखिरकार सफलता मिल गई. गुवाहाटी में खेले गए दूसरे टेस्ट मैच के आखिरी दिन साउथ अफ्रीका ने टीम इंडिया को सिर्फ 140 रन पर ढेर करते हुए 408 रन के रिकॉर्ड अंतर से जीत दर्ज की. इसके साथ ही उसने 2 मैच की टेस्ट सीरीज में 2-0 से क्लीन स्वीप कर लिया. ये भारत की टेस्ट क्रिकेट में सबसे बड़ी हार है, जबकि साउथ अफ्रीका ने 2000 के बाद पहली बार भारत में टेस्ट सीरीज जीती है.
👉पहले सेशन में ही तय हो गई हार

गुवाहाटी के बरसापारा स्टेडियम में टीम इंडिया को आखिरी दिन जीत के लिए 522 रन और चाहिए थे, जबकि उसके पास 8 विकेट बचे थे. यहां से जीत की संभावनाएं तो पहले ही खत्म हो चुकी थीं. साथ ही सीरीज भी हाथ से निकल ही चुकी थी. जरूरत सिर्फ ये थी कि पूरे दिन बल्लेबाजी करते हुए किसी तरह मैच को ड्रॉ करवाया जाए और क्लीन स्वीप की शर्मिंदगी से बचा जा सके. मगर पहले सेशन में ही ये तय हो गया कि मैच ड्रॉ भी नहीं हो पाएगा.
साउथ अफ्रीका ने दिन के पहले सेशन में ही कुलदीप यादव, ध्रुव जुरेल और ऋषभ पंत को पवेलियन लौटा दिया. इन तीनों को ही ऑफ स्पिनर साइमन हार्मर ने अपना शिकार बनाया, जो पहले टेस्ट से ही टीम इंडिया के लिए आफत साबित हो रहे थे. इस मैच में कप्तानी कर रहे पंत का विकेट सबसे बड़ा झटका था. साई सुदर्शन हालांकि दूसरी छोर से टिककर ज्यादा से ज्यादा ओवर निकाल रहे थे. उन्हें इस दौरान रवींद्र जडेजा का भी साथ मिला.
👉हार्मर के 6 विकेट बने घातक

मगर दूसरे सेशन की शुरुआत में ही सुदर्शन की पारी का अंत हुआ. मगर उम्मीद थी कि वॉशिंगटन सुंदर और जडेजा इस साल मैनचेस्टर टेस्ट वाला कमाल दोहरा सकेंगे, जहां दोनों ने इंग्लैंड के खिलाफ आखिरी दिन शतक जमाकर टेस्ट ड्रॉ करवाया था. करीब एक घंटा दोनों टिके भी रहे लेकिन हार्मर ने सुंदर को आउट कर अपने 5 विकेट पूरे किए, जबकि नीतीश कुमार रेड्डी ने भी फिर निराश किया और हार्मर का छठा शिकार बने. इसके बाद तो केशव महाराज ने एक ही ओवर में जडेजा और मोहम्मद सिराज को आउट कर टीम इंडिया को 140 रन पर ढेर कर दिया.
👉92 साल में सबसे बड़ी हार

इस तरह 549 रन के लक्ष्य का पीछा कर रही टीम इंडिया 408 रन के बड़े अंतर से हार गई, जो टेस्ट क्रिकेट में रन के लिहाज से भारत की सबसे बड़ी हार है. इतना ही नहीं, 2024 से पहले टीम इंडिया को घर में एक बार भी क्लीन स्वीप का सामना नहीं करना पड़ा था लेकिन पिछले एक साल में दूसरी बार टीम इंडिया का ऐसा हाल हुआ है. पिछले साल न्यूजीलैंड ने 3-0 से सीरीज जीती थी. इस तरह कोच गौतम गंभीर के आने के बाद से घर में भारत की 9 टेस्ट मैच में पांचवीं हार है, जबकि सिर्फ 4 मैच ही जीत पाए हैं.
👉सोशल मीडिया पर फैंस के फूटा गुस्सा ,कोच गंभीर को हटाने की मांग
एक फैन ने लिखा, ‘आईपीएल में खेलने वालों को जगह मिली है, रणजी के मेहनती खिलाड़ियों को नहीं। नतीजा सामने है।’ एक अन्य ने लिखा, ‘गंभीर को तुरंत हटाओ, वरना यह टीम और शर्मिंदा करेगी।’ कुछ फैंस ने तो यह तक लिखा कि अब भारत अपने घर में भी किसी से जीत की उम्मीद नहीं कर सकता। शरत नाम के फैन ने लिखा, ‘अब वेस्टइंडीज के अलावा, हर टीम भारत को भारत में टेस्ट मैचों में हरा सकती है। हम श्रीलंका में भी एक और टेस्ट सीरीज हार सकते हैं। इसमें कोई शक नहीं। बांग्लादेश भी भारत को भारत में हरा सकता है। गंभीर और अगरकर का शुक्रिया।’
वहीं, तवीन सेठी नाम के फैन ने लिखा, ‘बिल्कुल। 100 प्रतिशत मैं चाहता था कि जब भारत को न्यूजीलैंड ने भारत में हरा दिया था, तो गंभीर को टेस्ट मैचों से बर्खास्त कर दिया जाए। मैंने अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन देखा है।’ कुशा शर्मा नाम की यूजर ने लिखा, ‘कोच गौतम गंभीर को हटाओ और देखो कि कैसे यह टीम फिर से घरेलू टेस्ट जीतना शुरू कर देती है। गंभीर असली दोषी हैं। अगर जरा भी शर्म बची है तो उन्हें टेस्ट मैच के बीच में ही बर्खास्त कर दो।’ साईराज विचारे नाम के यूजर ने लिखा, ‘बहुत दिनों से ट्वीट नहीं किया!! लेकिन ये तो बेवकूफी से भी ज्यादा है। गंभीर को बर्खास्त करो।’
👉टीम पर आखिर क्यों उठ रहे सवाल
भारत पिछले कुछ समय से टेस्ट क्रिकेट में संघर्ष कर रहा है। पहले जहां भारतीय टीम घरेलू पिचों पर अजेय मानी जाती थी, वहीं अब लगातार लड़खड़ाती नजर आ रही है। टीम चयन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि अनुभवी खिलाड़ियों को नजरअंदाज कर कम अनुभवी खिलाड़ियों को मौका दिया जा रहा है। भारत को पिछले साल न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में 3-0 से क्लीन स्वीप का सामना करना पड़ा था। अब टेस्ट चैंपियनशिप के सामने भी बुरा हाल है।
👉कोच गंभीर से लेकर सलेक्टर्स निशाने पर



गुवाहाटी टेस्ट मैच भारत 408 रनों के अंतर से हार गई है। 92 साल बाद टेस्ट क्रिकेट में रनों के लिहाज से भारत की यह सबसे बड़ी हार है।
कोचिंग ,स्टाफ, चयनकर्ताओं और टीम मैनेजमेंट पर भी सवाल उठ रहे। इससे पूर्व घरेलू सीरीज में न्यूजीलैंड ने ही भारत का 3-0 से सफाया किया था। ये दोनों ही सीरीज में हार गंभीर की कोचिंग में ही भारत को मिले हैं। कोच ,सलेक्टर्स से लेकर BCCI पर सवाल उठ रहे,फैन्स टेस्ट क्रिकेट के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित नजर आ रहे। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो रोहितशर्मा,और विराट कोहली को भी टेस्ट क्रिकेट से दबावपूर्वक सन्यास लेने मजबूर किया गया। जिसका नतीजा सामने है।
हार की यह है बड़ी वजह 👇
👉रविचंद्रन अश्विन विवाद: क्या उनकी अनदेखी हुई?
पिछले साल ऑस्ट्रेलिया दौरे पर भारत के दूसरे सबसे अधिक टेस्ट विकेट लेने वाले गेंदबाज रविचंद्रन अश्विन के अचानक संन्यास ने सबको चौंका दिया। भले ही अश्विन ने खुद कहा कि दबाव नहीं था, लेकिन हालात कुछ और कहानी कहते हैं। तब कहा गया था कि गंभीर ने अश्विन की जगह वॉशिंगटन सुंदर जैसे ऑलराउंडरों को खिलाने पर पर जोर दिया था। लोअर ऑर्डर में बैटिंग कर सकने वाले गेंदबाज की अहमियत के दबाव में अश्विन को संन्यास के लिए मजबूर होना पड़ा था और वह गंभीर से निराश भी थे। टीम चयन और रणनीति में अश्विन की भूमिका कमजोर होती गई और यह संदेश स्पष्ट था टीम अब स्पेशलिस्ट नहीं बल्कि मल्टीस्किल्ड खिलाड़ियों पर चलेगी। इस बदलाव को कई पूर्व खिलाड़ी गलत दिशा मानते हैं, क्योंकि टेस्ट क्रिकेट में अनुभव, तकनीक और विशेषज्ञता की कीमत होती है।
👉विराट कोहली और रोहित शर्मा के संन्यास का प्रभाव
भारत की टेस्ट गिरावट का दूसरा बड़ा कारण है विराट कोहली और रोहित शर्मा का अचानक संन्यास। दोनों ने इसे निजी फैसला बताया, लेकिन रिपोर्ट्स का दावा है कि टीम प्रबंधन ने उन्हें धीरे-धीरे प्लान से बाहर किया। भारत के सबसे भरोसेमंद टेस्ट नंबर-चार कोहली और भारत के अनुभवी ओपनर और कप्तान रोहित, इन दोनों के अचानक जाने से टीम अनुभवहीन हो गई। अगर ये दोनों कुछ वर्षों तक युवा खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करते, तो शायद भारतीय टेस्ट टीम आज भी मजबूत होती।
👉बल्लेबाजी क्रम में प्रयोग: खिलाड़ी आए और गए
टेस्ट इतिहास में नंबर तीन की भूमिका हमेशा बेहद महत्वपूर्ण रही है। राहुल द्रविड़ और चेतेश्वर पुजारा जैसे बल्लेबाज़ इसके उदाहरण हैं। लेकिन गंभीर के दौर में शुभमन गिल, साई सुदर्शन, करुण नायर, वॉशिंगटन सुंदर, इन खिलाड़ियों को लगातार बदला गया। चयन में स्थिरता की कमी ने खिलाड़ियों को असुरक्षित और दबाव में ला दिया। ऑलराउंडर्स को प्राथमिकता देकर विशेषज्ञ बल्लेबाजों की जगह कम कर दी गई। कई विशेषज्ञों का कहना है, ‘टीम बैलेंस आज न तो बैटिंग का है और न बॉलिंग का, सिर्फ प्रयोगशाला बन गई है।’
👉हर मैच में प्लेइंग-11 में बदलाव
गंभीर का एक और बड़ा निर्णय जिसने अस्थिरता बढ़ाई, वह है लगातार खिलाड़ियों को बदलना। पिछले एक साल में भारत ने बार-बार टीम चुनी, पिच चुनी, रणनीति बदली, पर स्थिरता कहीं नहीं दिखाई दी। पहली गलती के बाद ही खिलाड़ियों को बाहर करने की नीति ने टीम का आत्मविश्वास तोड़ दिया। पूर्व दिग्गजों का मानना है कि टेस्ट क्रिकेट में निरंतरता चयन से आती है, प्रयोगों से नहीं। खिलाड़ी टीम के लिए नहीं, बल्कि अपनी जगह बचाने के लिए खेलते नजर आए।
👉पिच रणनीति और आक्रामक सोच का उल्टा असर
कहा जा रहा है कि गंभीर की चाहत थी कि भारत ऐसी पिचें बनाए जहां गेंद तीसरे सत्र से ही शार्प टर्न लें। लेकिन यह रणनीति बैकफायर हो गई। कोलकाता टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका ने स्पिन ट्रैक पर भारत को धूल चटाई और मैच सिर्फ तीन दिन में खत्म हो गया। कोलकाता में जब पिच स्पिनर्स की मददगार थी, तो चार स्पिनर्स को खिलाने का फैसला भी समझ से परे था। दक्षिण अफ्रीका ने तीन मुख्य स्पिनर्स के दम पर मैच जीता। पहले टीमें जीत नहीं तो मैच को ड्रॉ कराने पर भी ध्यान देती थीं, लेकिन अब जल्द से जल्द जीत दर्ज करने की चाहत से नुकसान पहुंचा है। कम दिनों में जीत के लिए बनाई गई अत्यधिक स्पिन-सहायक पिचें अब खुद भारतीय बल्लेबाजों के लिए खतरा बन रही हैं। असमान उछाल और तेज टूटती सतहें विरोधियों जितना ही भारत को भी परेशान कर रही हैं, जहां भारत कभी अजेय हुआ करता था।
👉 घर पर ही कमजोर बल्लेबाजी
सिर्फ नंबर तीन नहीं, ओपनिंग से लेकर पांचवें नंबर तक भारत की बल्लेबाजी कमजोर दिखी। विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा, अजिंक्य रहाणे जैसे मजबूत तकनीक और सॉलिड डिफेंस वाले खिलाड़ियों के जाने के बाद नई बैटिंग लाइन-अप अभी स्थिर नहीं हो पाई है। न्यूजीलैंड से जब टीम हारी थी तब रोहित शर्मा और विराट कोहली भी टीम में थे। ऐसे में टीम इंडिया को मध्यक्रम में ऐसे बल्लेबाज की कमी खल रही है, जो मैदान पर जम सके और गेंदबाजों को थका सके। पारी को संभालने वाले बल्लेबाजों की कमी बार-बार सामने आ रही है। यही नतीजा है कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ दो टेस्ट में भारत की ओर से एक भी शतक नहीं लगा और न ही भारतीय टीम चार पारियों में एक बार भी 202 का आंकड़ा पार कर सकी।
👉 न तो गेंदबाज मैच जिता रहे, न बल्लेबाज बना रहे
बुमराह, शमी, अश्विन और जडेजा, इनके दम पर भारत कई बार बच निकला है, लेकिन लगातार मैच जिताने का दबाव गेंदबाजों पर ही नहीं डाला जा सकता। एक समय भारत की मजबूती बल्लेबाजी हुआ करती थी और घरेलू पिचों पर जीत की वजह भी यही थी, लेकिन अब इसमें गिरावट देखने को मिल रही है। कोच गंभीर समेत टीम मैनेजमेंट का भरोसा इस बात पर है कि गेंदबाज मैच जिताते हैं और बल्लेबाज मैच बनाते हैं, लेकिन न तो गेंदबाज अपना काम कर रहे, न ही बल्लेबाज मैच बना पा रहे।
👉13 महीने में भारत की पांच हार, बड़ी चेतावनी
16 अक्तूबर, 2024 से अब तक भारत ने घर पर सात टेस्ट खेले और इनमें से पांच हारे हैं। कोच गौतम गंभीर की देखरेख में घर पर ही टीम के प्रदर्शन में गिरावट आई है। पिछले 13 महीने में हम घर पर जितने टेस्ट हारे हैं, उससे पहले उतने टेस्ट हारने में भारत को करीब 13 साल लगे थे। 16 अक्तूबर, 2024 से अब तक घरेलू टेस्ट में हार का दर 71.42 प्रतिशत है, जो 1932 से अब तक यानी भारत के टेस्ट इतिहास में सबसे खराब है। इस अवधि में भारत को घरेलू परिस्थितियों में अक्सर अपने ही बनाए पिचों का उल्टा प्रभाव झेलना पड़ा है। स्पिनर्स के खिलाफ खराब बल्लेबाजी ने भारत की बैटिंग को कई बार ध्वस्त किया है। जबकि भारत ने खुद ही घर पर लगभग सभी टेस्ट में स्पिन पिच की मांग की थी।
👉दिसंबर 2012–2024: लगभग 13 साल में 5 हार और अब 13 महीने में ही उतनी
अगर इस दौर की तुलना पिछले वर्षों से करें, तस्वीर और भी चिंताजनक बनती है। दिसंबर 2012 से 15 अक्तूबर, 2024 तक यानी लगभग 13 साल में भारत ने घर में 55 टेस्ट खेले। इसमें उसने 42 जीते, सिर्फ पांच हारे और सात ड्रॉ रहे। हार का दर सिर्फ 9.09 प्रतिशत। यानी भारत को घर में पांच बार हराना विरोधियों के लिए दशक भर की मेहनत जैसा था। और अब उतने ही मैच भारत ने सिर्फ पिछले 13 महीनों में गंवा दिए। यह गिरावट न केवल टीम की तैयारी पर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि घरेलू लाभ अब भारत के पक्ष में वैसा नहीं रहा जैसा पहले था।
👉2001–2012: टीम में बदलाव का दौर, फिर भी इतनी हार नहीं
2001 से 30 नवंबर 2012 तक भारत का घरेलू टेस्ट रिकॉर्ड भी संतुलित रहा। इस दौरान खेले गए 57 टेस्ट में भारत ने 29 जीते, आठ हारे और 20 ड्रॉ रहे। उस दौर में टीम का बदलाव बहुत बड़ा था, गांगुली युग से द्रविड़ युग और फिर धोनी युग तक की यात्रा, गेंदबाजी में उतार-चढ़ाव, तेज गेंदबाजी में अनुभव की कमी भी थी, फिर भी भारत का हार प्रतिशत 14.03 फीसद था। आज की तुलना में यह आंकड़ा पांच गुणा बेहतर दिखता है, जबकि उस समय टीम की संरचना और मिलने वाली सुविधाएं आज जैसी मजबूत नहीं थीं।
👉1932–2000: शुरुआती संघर्ष का दौर भी इतना खराब नहीं था
भारत ने 1932 से लेकर 2000 तक कुल 179 घरेलू टेस्ट खेले। इसमें भारत ने 49 जीते, 42 हारे, एक टाई रहा और 87 मुकाबले ड्रॉ रहे थे। हार का अनुपात 23.46 प्रतिशत था। यानी वह दौर जब भारत टेस्ट क्रिकेट में सीखने की यात्रा पर था, तब भी टीम का प्रदर्शन वर्तमान 13 महीनों से बेहतर था।
👉क्यों यह दौर भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है?
भारत टेस्ट क्रिकेट में अपनी पहचान घर में बने रिकॉर्ड्स की वजह से बनाता रहा है। घर की हारें सिर्फ आंकड़े नहीं बदलतीं, वे टीम का मनोबल, विपक्ष की धारणा और भविष्य की तैयारी सब पर असर डालती हैं। इतना ही नहीं, विश्व टेस्ट चैंपियनशिप आने के बाद से टीमें घर की सीरीज को भुनाने का अवसर नहीं छोड़तीं। ऐसे में घर पर एक भी हार से टीम के फाइनल में पहुंचने की उम्मीदों को झटका लगता है। भारत 2021 और 2023 में डब्ल्यूटीसी के फाइनल में पहुंचा था। तब टीम ने विदेशी पिचों के साथ घर में शानदार प्रदर्शन किया था। 2025 के फाइनल में नहीं पहुंचने की वजह न्यूजीलैंड से हार रही थी। अब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ क्लीन स्वीप से भी उम्मीदों को झटका लगा है। अगर भारत घर में ही जीतना बंद कर दे, तो विदेशी दौरों में टीम को और ज्यादा मानसिक दबाव झेलना पड़ेगा।
👉क्या यह खराब समय है या गलत प्रयोग?
भारत आज जिस स्थिति में है, वह सिर्फ खराब फॉर्म नहीं बल्कि रणनीति, चयन और सोच की असंगति का परिणाम लगता है। गौतम गंभीर के विजन पर सवाल हैं, लेकिन साथ ही यह दौर भारतीय टेस्ट क्रिकेट के बदलते अध्याय का हिस्सा भी हो सकता है। सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि क्या गंभीर इस टीम को फिर से खड़ा कर पाएंगे या भारत को नए नेतृत्व की तलाश करनी होगी?
