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कोरोना की दूसरी लहर में ‘ऑक्सीजन’ की किल्लत ने लोगों को एक सबक दे दिया है। लोग अब सचेत हो गए हैं और उन्होंने अपने घरों में ‘ऑक्सीजन’ लेने के लिए प्राकृतिक तरीका अपना लिया है। मात्र दो हजार रुपये में पूरे परिवार को ताजी ‘प्राणवायु’ मिल जाती है। नासा ने कई ऐसे पौधे घरों में लगाने के लिए सिफारिश की है, जिनसे भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है। पौधों के द्वारा घर में मौजूद हानिकारक गैसों के प्रभाव को भी खत्म किया जा सकता है। भले ही देश के अनेक हिस्सों में लॉकडाउन या कर्फ्यू लगा है, अर्थव्यवस्था पर भी कुछ हद तक प्रभाव पड़ा है, लेकिन ‘नर्सरी’ का कारोबार पिछले डेढ़ माह में 50 फीसदी तक बढ़ चुका है।
इंडियन नर्सरीमेन्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वाईपी सिंह कहते हैं, ये मान कर चलें कि किसी नर्सरी पर एक दिन में ढाई सौ ग्राहक आ रहे हैं तो उनमें से 150 नए ग्राहक हैं, यानी जो पहली बार नर्सरी आए हैं। हर ग्राहक का फोकस ‘ऑक्सीजन’ देने वाले पौधों पर रहता है। एसोसिएशन अब इस दिशा में काम कर रही है कि होम आइसोलेशन या अस्पतालों में भर्ती लोगों को ऑक्सीजन देने वाला एक प्लांट भेंट किया जाए।
बतौर वाईपी सिंह, ऑक्सीजन को लेकर लोगों में आजकल जो क्रेज है, वह पहले कभी नहीं देखा गया। दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों में दीवाली के आसपास जब प्रदूषण होता है तो उस वक्त भी कुछ लोगों को ऑक्सीजन प्लांट्स की याद आई थी। सामान्य आदमी प्योरीफायर नहीं खरीद सकता। उसका विकल्प घरों में लगाए जाने वाले ऑक्सीजन प्लांट्स हैं। नासा ने जिन प्लांट्स को घरों में लगाने की सिफारिश की है, उनमें मनी प्लांट्स, पीस लिली, स्नेक प्लांट, रबड़ प्लांट, स्पाइडर, एंथूरियम, इंग्लिश आईवी, बैंबू पाम, एरेका पाम और बोस्टर्न फर्न आदि शामिल हैं। इन प्लांट्स को घरों में कहीं पर भी रखा जा सकता है। पहले गांवों में बरगद और पीपल जैसे पेड़ वायु को शुद्ध रखते थे। शहरों में अब इन पौधों के लिए जगह नहीं बची है। लोगों का रुझान फैंसी प्लांट्स की तरफ ज्यादा है, जो अधिक न फैलें, मगर ऑक्सीजन देते रहें।
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में नर्सरी के कारोबार में अच्छा खासा उछाल आया है। मौजूदा समय में नर्सरी कारोबार में एक लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं। अकेले केरल में दस हजार से अधिक नर्सरी सेंटर हैं। देश के तकरीबन सभी हिस्सों, खासतौर पर शहरों में एकाएक प्लांट्स की भारी मांग है। अब बड़े ही नहीं, बच्चों का भी पौधों के प्रति रुझान बढ़ रहा है। ऑक्सीजन प्लांट के बारे में वाईपी सिंह बताते हैं कि उदाहरण के तौर पर ऐसे समझें कि एरेका पाम का दो फीट लंबा पौधा ऑक्सीजन का एक अच्छा स्रोत बन जाता है। बड़े आदमी के लिए ऐसे चार प्लांट काफी हैं। इसी तरह से परिवार के दूसरे लोग भी अपने लिए ऑक्सीजन प्लांट्स लगा सकते हैं। अगर आप कोलकाता वाला एरेका पाम लेते हैं तो उसके ढाई सौ रुपये से रेट शुरू हो जाते हैं। पूना का एरेका प्लांट पांच सौ रुपये तक मिलता है। पौधे की हेल्थ और वैरायटी के आधार पर रेट तय होता है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि दो हजार रुपये में चार लोगों का परिवार, जिसमें दो बच्चे हैं और दो व्यस्क हैं, उनके लिए ऑक्सीजन प्लांट्स मिल जाते हैं। घर में मौजूद बैंजीन, फॉर्मलडिहाइड, ट्राई क्लोरो एथिलीन, अमोनिया, जाइलीन, टोल्यून, एसीटोन और दूसरे अनेक हानिकारक तत्वों को इन पौधों के जरिए खत्म किया जा सकता है। ये पौधे हवा में मौजूद हानिकारक तत्वों को सोख लेते हैं और ताजा प्राणवायु छोड़ते हैं। रबड़ प्लांट जैसे कई ऐसे पौधे हैं, जो बैक्टीरिया तक को नष्ट कर सकते हैं। वाईपी सिंह के मुताबिक, कोरोनाकाल में तो पौधों की मांग बढ़ रही है, लेकिन अभिभावकों को अपने बच्चों को प्लांटेशन के प्रति जागरूक करना चाहिए। हर बच्चे को कम से कम एक प्लांट गोद लेना चाहिए। इससे बच्चों में अनुशासन, जिम्मेदारी और पर्यावरण को स्वच्छ रखने का भाव पैदा होगा।