कोरबा-बरपाली – आदिवासी सेवा सहकारी समिति बरपाली में इन दिनों कृषकों को किस तरह प्रताड़ित किया जा रहा है इसका ताजा उदाहरण सलिहाभाटा निवासी मनहरण महतो नामक कृषक के मामले को देख कर पता चलता है। उसे अपने 4 हेक्टेयर खेत के लिए फसल बीमा राशि केवल1800रुपये दिया गया है जबकि शासन के नियमों के अनुसार किसानों को प्रति एकड़4000रुपये का भुगतान करना चाहिए था।

इस तरह कृषक को 4 हेक्टेयर यानि10 एकड़ जमीन के लिए 40,000 रुपये का भुगतान किया जाना था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। क्यों नहीं किया गया इसका कारण तो सहकारी समिति वाले ही बता सकते हैं। जब इस संबंध में समिति के अध्यक्ष भुवन लाल कंवर से पूछा गया तो उन्होंने इसका ठीकरा बीमा कंपनी पर फोड़ दिया जबकि वास्तविकता यह है कि कर्मचारियों द्वारा कृषक मनहरण महतो के नाम पर 4 हेक्टेयर के स्थान पर केवल 40 डिसमिल जमीन का बीमा दावा पेश किया गया है। ऐसा क्यों हुआ यह बता पाना तो मुश्किल है लेकिन सहकारिता विभाग में इस प्रकार के कारनामे आम बात हैं। यदि आप किसी मामले के तह तक जाने का प्रयास करेंगे तो वे तुरंत कह देंगे कि प्रिंट मिस्टेक हो गया था जबकि वास्तविकता कुछ और होती है और जितने भी प्रिंट मिस्टेक के मामले होते हैं उनके पीछे ज्ञात राज छुपा होता है। यदि सहकारी समितियों में काम करने वाले छोटे से छोटे कर्मचारियों के खिलाफ सूक्ष्म जांच की जाय तो कई बड़े कारनामे उजागर हो सकते हैं। इस विभाग को कर्मचारी और जनप्रतिनिधियों ने एक ब्यवसाय की तरह कमाई का जरिया बना लिया है।
बता दें कि सहकारिता आंदोलन की शुरुआत1905में हुई थी और इसका उद्देश्य गांव में रहने वाले किसानों को समिति के माध्यम से खाद बीज के साथ कृषि कार्य के लिए सस्ते ब्याज पर कर्ज उपलब्ध कराना है जिसे किसान फसल के बाद अपनी उपज बेच कर चुकता कर सके साथ ही अपने जीवन शैली को एक सहकारिता का रूप दे सके जिससे किसानों में एक दूसरे के साथ मिलकर काम करने की भावना प्रोत्साहित किया जा सके। सहकारिता आंदोलन कृषकों के लिए रीढ़ की हड्डी की तरह है ग्रामीण अर्थव्यवस्था का पूरा दारोमदार सहकारिता पर निर्भर होता है लेकिन वर्तमान में कर्मचारी और जनप्रतिनिधि मिल कर इसे दीमक की तरह चाट रहे हैं जिस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है।