एनटीपीसी नहीं कर पा रहा राखड़ का सुरक्षित प्रबंधन ,नाराज ग्रामीणों ने एसडीएम कार्यालय का किया घेराव
,समस्या का शीघ्र निराकरण नहीं होने पर दी आंदोलन और चक्काजाम की चेतावनी

बिलासपुर । एनटीपीसी प्रबंधन के मनमाने रवैए और प्रदूषण फैलाने के खिलाफ ग्रामीण अब आंदोलन के मूड में आ गए हैं। मीडिया ने तीन दिन पहले राखड़ बांध से उड़ने वाले राख से ग्रामीणों को होने वाली दिक्कतों को उजागर किया था। इस खबर के बाद ग्रामीणों ने बुधवार को मस्तूरी में एसडीएम दफ्तर का घेराव कर जमकर नारेबाजी की। उन्होंने चेतावनी दी है कि उनकी समस्याओं को दूर नहीं किया जाएगा तो अब ग्रामीणों को आंदोलन और चक्काजाम करना पड़ेगा।

दरअसल, जिला मुख्यालय से महज 15 किलोमीटर दूर सीपत स्थित एनटीपीसी प्रबंधन बिजली उत्पादन की आड़ में ग्रामीणों को बीमारी बांट रहा है। यहां ग्राम रांक, रलिया के पास तीन राखड़ डैम बनाया गया है, जहां एनटीपीसी थर्मल प्लांट से निकल रही राख को एकत्र किया जा रहा है। तीनों डैम भरने की वजह से गर्मी में इसे सूखा कर फ्लाई ऐश सहित दूसरे उपयोग के लिए सप्लाई किया जाता है। इधर, राख के सूखने के बाद हल्की सी हवा के झोंकों और दिन रात चल रहे भारी वाहनों से आसपास के गांव में राख का डस्ट बीमारी बनकर उनके घरों तक पहुंच रहा है। समस्याओं को लेकर आंदोलन करने का ऐलान कर दिया है। गुस्साए ग्रामीणों ने एनटीपीसी प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए मस्तूरी स्थित एसडीएम ऑफिस का घेराव कर दिया। उन्होंने तहसीलदार को ज्ञापन सौंपकर राखड़ और प्रदूषण से मुक्ति दिलाने की मांग की। बताया कि गांव में दिन रात राख और डस्ट उनके किचन तक पहुंच रहा है। ऐसे में उन्हें पके हुए भोजन को फेंकना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि एनटीपीसी की जब स्थापना हुई, तब उनकी समस्याओं को दूर करने का भरोसा दिलाया गया था। उन्हें बताया गया था कि राखड़ बांध से किसी भी ग्रामीण को कोई परेशानी नहीं होगी और इसे प्रदूषण मुक्त रखा जाएगा। एनटीपीसी के शुरू होने के 5 साल बाद ही समस्याएं शुरू होने लगीं। ग्रामीणों ने बताया कि पिछले पांच-सात साल के ग्रामीण राखड़ और इसके डस्ट से परेशान हैं। बच्चों को राख से खुजली हो रही है, उनकी आंखों पर भी असर पड़ रहा है। राख उड़ने से सांस, दमा जैसे फेफड़ों की बीमारियां होने लगी हैं। गांव की महिला अनीता साहू ने कहा कि राखड़ बांध से प्रभावित ग्रामीण कितना परेशान है, इसकी जानकारी लेने की सुध न तो एनटीपीसी प्रबंधन को है और न ही स्थानीय अफसरों को है। सुबह से लेकर रात तक गांव में किस तरह राख उड़ रहा है इससे अफसरों को कोई मतलब ही नहीं है। उन्होंने कहा कि दफ्तर में एसी में बैठने वाले अफसर एक दिन उनके गांव में बिताकर देखें, तब उन्हें पता चल जाएगा कि हम कितनी परेशानियां झेल रहे हैं और तो और अधिकारी केवल हवा चलते समय ही हमारे गांव के रास्ते से बाइक से गुजर जाएं, तब भी उन्हें इस बीमारी का अंदाजा हो जाएगा।