दिल्ली । केंद्र सरकार ने शुक्रवार को साफ कर दिया कि अनुसूचित जाति और जनजाति को आरक्षण देने के मामले में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। शुक्रवार को पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक हुई। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी के आरक्षण पर क्रीमी लेयर का प्रावधान दिया था।
कैबिनेट में इस पर चर्चा हुई। कैबिनेट का मत है कि एनडीए सरकार अंबेडकर के बनाए संविधान को लेकर प्रतिबद्ध है. एससी एवं एसटी में कोई क्रीमी लेयर का प्रावधान नहीं है। बता दें कि शुक्रवार को बीजेपी के एस-एसटी सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने पीएम मोदी ने मुलाकात की थी। उस मुलाकात में भी पीएम मोदी ने साफ कर दिया था कि एस-एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाव दिया गया था। केंद्र सरकार आरक्षण के प्रावधान में कोई भी बदलाव नहीं करेगी।
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णयों के बारे में संवाददाताओं को जानकारी देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि मंत्रिमंडल की बैठक में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर विस्तृत चर्चा हुई, जिसमें अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण पर कुछ सुझाव दिए गए थे।
एससी-एसटी आरक्षण पर जानें कैबिनेट का फैसला
उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल का यह सुविचारित दृष्टिकोण है कि एनडीए सरकार संविधान के प्रावधानों के प्रति प्रतिबद्ध है। वैष्णव ने कहा, “बी आर अंबेडकर द्वारा दिए गए संविधान के अनुसार एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है।
उन्होंने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण का प्रावधान संविधान के अनुरूप होना चाहिए. यह पूछे जाने पर कि क्या यह मुद्दा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री या प्रधानमंत्री ने उठाया था, वैष्णव ने कहा कि यह मंत्रिमंडल का सुविचारित दृष्टिकोण है।
शुक्रवार सुबह कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विपक्ष से कहा था कि वे एससी एवं एसटी आरक्षण से बाहर रखने के लिए क्रीमी लेयर बनाने के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के “टिप्पणियों” पर समाज को “गुमराह” न करें।
लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान पूरक प्रश्नों का उत्तर देते हुए मेघवाल ने कहा, “एससी एवं एसटी के उप-वर्गीकरण में क्रीमी लेयर का संदर्भ सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणी है, न कि निर्णय का हिस्सा है। सदस्य को समाज को गुमराह करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कही थे ये बात
पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने विचार रखा था कि राज्यों को अधिक वंचित जातियों के उत्थान के लिए आरक्षित श्रेणी के अंदर कोटा देने के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 बहुमत से माना था कि राज्यों द्वारा एससी और एसटी के आगे के उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जा सकती है ताकि इन समूहों के अंदर अधिक पिछड़ी जातियों को कोटा दिया जा सके।
कहा गया था कि उप-वर्गीकरण का आधार “राज्यों द्वारा मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए, जो अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकते।