CG : बस्तर की अनकही कहानी “माटी”अब बड़े पर्दे पर,छत्तीसगढ़ी सिनेमा का सबसे संवेदनशील और सशक्त दस्तावेज़ , 14 नवंबर से सिनेमाघरों में

रायपुर । बस्तर — वह धरती, जिसने दशकों तक गोलियों की गूंज और अनकहे दर्द को सहा। आज वही माटी, अपनी दबी हुई आवाज़ और दिल की सच्चाई लेकर बड़े परदे पर बोलने जा रही है।

चन्द्रिका फिल्म्स प्रोडक्शन की बहुप्रतीक्षित छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘माटी’ 14 नवंबर को प्रदेशभर के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है। यह केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि उस मिट्टी की आत्मा की पुकार है — जिसे निर्माता संपत झा और निर्देशक अविनाश प्रसाद ने चार वर्षों के अथक समर्पण से कैमरे में अमर कर दिया है।
यह जानकारी फिल्म की टीम ने पत्रकार भवन मे प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी

👉 यह केवल प्रेम कहानी नहीं — यह “माटी” से प्रेम है!

‘माटी’ की कथा भीमा और उर्मिला के निष्कलुष प्रेम की है, जो बस्तर की रक्तरंजित जमीन पर पनपता है — जहाँ संघर्ष, भय और उम्मीद एक साथ सांस लेते हैं।
यह उन हजारों निर्दोष ग्रामीणों, शहीद जवानों और आत्मसमर्पितों की मौन गाथा है, जिनकी पीड़ा इतिहास के पन्नों में कभी दर्ज नहीं हुई, पर जिन्होंने इस माटी को सींचा अपने लहू और विश्वास से।
असली बस्तर की धड़कन – बस्तर की मिट्टी की खुशबू के साथ

👉निर्माता संपत झा का कहना है —

“इस फिल्म का उद्देश्य बस्तर की नकारात्मक छवि को तोड़कर, उसकी सच्ची पहचान, उसकी संस्कृति और अपनत्व को दुनिया के सामने लाना है।”

यह फिल्म बस्तर की वास्तविक तस्वीर पेश करती है — जहाँ दर्द के साथ-साथ प्रेम, लोकगीतों की लय और जंगलों की हरियाली भी सांस लेती है।

👉स्थानीय कलाकारों का महाकुंभ – दिल से अभिनय
‘माटी’ की सबसे बड़ी ताकत उसके लोग हैं —

हर किरदार, हर चेहरा बस्तर की सच्चाई से जुड़ा है।
फिल्म में स्थानीय कलाकारों, शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और सबसे विशेष, करीब 40 आत्मसमर्पित माओवादियों ने अभिनय किया है। यह केवल अभिनय नहीं, बल्कि जीवन से निकली हुई अभिव्यक्ति है।
भीतरी अहसासों का निर्देशन

👉निर्देशक अविनाश प्रसाद कहते हैं —

“जब हमने कैमरा बस्तर की घाटियों की ओर मोड़ा, तो वहाँ सिर्फ दृश्य नहीं थे — वहाँ आत्मा की गहराई तक उतर जाने वाली अनुभूतियाँ थीं।”

उनके निर्देशन में बस्तर का हर दृश्य एक भावनात्मक अनुभव में बदल जाता है — जहाँ हर ध्वनि, हर चुप्पी कुछ कहती है।
एक सच्ची श्रद्धांजलि

फिल्म की पूरी टीम ने ‘माटी’ को उन दिल दहला देने वाली घटनाओं के प्रति श्रद्धांजलि बताया है, जिन्होंने बस्तर की नियति को हमेशा के लिए बदल दिया।

👉निर्माता संपत झा भावुक होकर कहते हैं —

“इस फिल्म में कोई नायक या खलनायक नहीं है — यहाँ सिर्फ इंसान हैं, जिनके पास दर्द है, उम्मीद है और अपने बस्तर से गहरा प्रेम है। जब वायरल तस्वीरों को लेकर हमें धमकियाँ मिलीं, जांचें हुईं — तब भी हम नहीं रुके। क्योंकि यह माटी हमारा ऋण है, जिसे हम उतारना चाहते थे।”

👉सिनेमाघरों में दस्तक — 14 नवंबर 2025

बस्तर के लोकगीतों की मधुर गूंज, प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम छटा और इस मिट्टी का अपनापन — हर दर्शक के हृदय को गहराई से स्पर्श करेगा।
‘माटी’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि बस्तर की संस्कृति, संवेदना और प्रेम का जीवंत दस्तावेज़ है।

👉विनम्र आमंत्रण

‘माटी’ सिर्फ मनोरंजन नहीं — यह हमारी अपनी कहानी है, हमारी जड़ों की पहचान है।
बस्तर के दर्द, संघर्ष और विजय को महसूस करने के लिए —
14 नवंबर 2025 को अपने निकटतम सिनेमाघर में अवश्य जाएँ।
यह फिल्म आपकी है — आपकी “माटी” की है।
इसे ज़रूर देखें, महसूस करें, और अपने दिल में बसाएँ।