0 सतही जांच के आधार पर गम्भीर प्रकरण को खात्मा में डालने की कोशिश नाकाम,खात्मा आवेदन खारिज
कोरबा। कोरबा के बहुचर्चित पाम मॉल से जुड़े जमीन घोटाला के मामले में पीड़िता अरुणिमा सिंह को बड़ी राहत मिली है। जेएमएफसी न्यायाधीश सत्येंद्र प्रसाद ने 10 नवंबर 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कोतवाली पुलिस द्वारा अज्ञात आरोपी के विरुध्द दर्ज आपराधिक प्रकरण में लगाए गए खात्मा आवेदन को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने पुलिस की जांच को केवल ‘सतही दिखावा’ करार देते हुए कड़ी फटकार लगाई और 7 बिंदुओं पर विस्तृत जांच के लिए 60 दिन के भीतर अंतिम प्रतिवेदन अनिवार्य रूप से जमा करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पुलिस ने पीड़िता अरुणिमा सिंह को बार-बार थाना बुलाकर घंटों बैठाकर परेशान किया, जिस पर गंभीर नाराजगी जताते हुए कोतवाली थाना प्रभारी को आदेश दिया गया कि भविष्य में पीड़िता को थाना न बुलाया जाए, बल्कि आवश्यकता होने पर पुलिस उनके निवास स्थान पर जाकर सहयोग ले।
👉एसडीएम कार्यालय और पुलिस की जांच पर उठ रहे सवाल!
प्रार्थिया अरूणिमा सिंह की भूमि खसरा नंबर 663/3, रकबा 0.0380 हेक्टेयर पूर्वी सीमा पॉवर हॉउस रोड से लगी हुई है लेकिन इस जमीन की चौहद्दी और स्वरूप में छेड़छाड़ कर इस जमीन को पाम मॉल में शामिल करा दिया गया। मॉल के मालिक ने यह जमीन जिससे क्रय करना बताया है,उसकी जमीन अन्यत्र है और अरुणिमा की जमीन दबा दी गई साथ ही स्थल परिवर्तन कर दिया गया। काफी कोशिश के बाद उनकी शिकायत पर थाना कोतवाली में अपराध कं. 1085/2020 पर धारा 420, 465, 467, 468, 471 भादवि के अंतर्गत अज्ञात के विरुद्धअपराध पंजीबद्ध कर विवेचना कार्यवाही की गई। इस कड़ी में राजस्व विभाग से भी सहयोग लिया गया जिसमें
कार्यालय अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) कोरबा से प्राप्त प्रतिवेदन को आधार बनाते हुये यह प्रतिवेदन दिया गया है कि आरोपी द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया है। इसके आधार पर कोतवाली के विवेचना अधिकारी द्वारा यही कथन किया गया कि आरोपी द्वारा कोई अपराध किया जाना नहीं पाया गया, इसलिये पुलिस अधीक्षक की अनुमति प्राप्त कर खात्मा न्यायालय में प्रस्तुत किया गया।
👉 पीड़ित पक्ष असंतुष्ट
प्रकरण में प्रार्थिया श्रीमती अरूणिमा सिंह और उसके पुत्र अंकित सिंह ने न्यायालय को बताया कि वे पुलिस की विवेचना कार्यवाही से संतुष्ट नहीं हैं तथा पुलिस वास्तविक आरोपी को बचाने का प्रयास कर रही है।
👉 न्यायालय ने भी पाया,विवेचना सही नहीं की गई

न्यायाधीश ने पाया कि- पुलिस की ओर से प्रस्तुत खात्मा प्रतिवेदन एवं संलग्न केस डायरी का अवलोकन किया गया। खात्मा प्रतिवेदन के प्रस्तुत प्रकरण में विवेचना के एक मात्र प्रतिवेदन के आधार पर यह निष्कर्ष दे दिया गया है कि प्रकरण में आरोपी द्वारा कोई अपराध नहीं किया गया है। सम्पूर्ण अभिलेख के अवलोकन उपरांत स्पष्ट दर्शित हो रहा है कि विवेचना अधिकारी द्वारा खसरा नंबर 663/3 के संबंध में मूलतः जिन बिन्दुओं पर विवेचना करनी चाहिये थी, उन बिन्दुओं पर विवेचना नहीं की गई है। यदि विवेचना अधिकारी द्वारा पूर्ण विवेचना की गई होती तो संपूर्ण प्रकरण दस्तावेजी साक्ष्य पर आधारित है और पुलिस को आवश्यक साक्ष्य मिला होता। इस तरह की टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने प्रकरण में पुलिस की ओर से प्रस्तुत खात्मा आवेदन को अस्वीकार कर बिंदुवार जांच का आदेश दिया है। विवेचना से संबंधित थाना प्रभारी कोतवाली को आदेश दिया गया है कि दिए गए बिन्दुओं पर पुनः अन्वेंषण करें और उसके पश्चात अंतिम प्रतिवेदन करना सुनिश्चित करें।
👉रसूख के आगे अंकित सिंह ने हिम्मत नहीं हारी
यह कानूनी लड़ाई वास्तव में पीड़िता के पुत्र अंकित सिंह के प्रयासों का परिणाम है। अंकित सिंह ने रसूख के आगे खुद को मजबूती से खड़ा रखा। तब भी, जबकि उसे घण्टों तक एक तत्कालीन पुलिस अधिकारी ने अपने केबिन में बिठाकर रखा और उस पर ही केस बनाने तक डराया। एक आला अधिकारी ने तो काफी अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया। राजस्व विभाग भी इस सांठगांठ में शामिल रहा। अंकित हारा नहीं, पुलिस से ज्यादा स्वयं जांच की, तथ्य जुटाए, और खुद ही अपनी कानूनी लड़ाई जारी रखी। आज इसका सुखद पहलू रहा कि जिन तथ्यों को छिपाकर आरोपियों को बचाने का प्रयास राजस्व और पुलिस महकमे द्वारा किया जाता रहा, उसे न्यायालय ने उजागर किया। अब जांच निष्पक्ष हो तो,यह कोरबा में रसूख के बल पर होने वाले जमीन अफरा- तफरी के मामलों में ऐतिहासिक हो सकता है।
