युद्धग्रस्त क्षेत्रों से निकले बाहर , पर बिना सुविधाएं जिंदगी अभी भी सांसत में

यूक्रेन । यूक्रेन के युद्धग्रस्त शहरों से निकलकर किसी तरह दूसरे देश पहुंचे छात्रों को जान का खतरा तो नहीं हैं, लेकिन मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। रायपुर के एक छात्र आकाश का वीजा आज खत्म हो रहा है तो फ्लाइट के इंतजार में हजारों छात्र माइनस डिग्री टेम्प्रेचर में अस्थाई कैंप में ठिठुर रहे हैं। इनमें से कई की तबीयत भी खराब हो चुकी है। 3-4 दिन से शेल्टर में जमीन पर सो रहे ये छात्र इंडिया की फ्लाइट के इंतजार में हैं।

यूक्रेन छोड़कर निकलने वाले छात्रों ने अपनी व्यथा सुनाई। रायगढ़ जिले के खरसिया के छात्र संतोष बरेठ ने बताया कि वह मंगलवार को उसके साथ करीब 50 भारतीय स्टूडेंट्स हंगरी बॉर्डर पहुंचे, यहां उन्हें लाइन लगाकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। रायपुर के स्टूडेंट आकाश राव ने बताया कि वह तीन दिन से रोमानिया बॉर्डर में फंसा है। यहां उसे शेल्टर में ठहराया गया है। बुधवार को उसका वीजा खत्म होने वाला है। ऐसे में उसे दूतावास तक पहुंचना जरूरी है। छात्रों के मुताबिक पोलैंड बार्डर में हालात सबसे खराब हैं, वहां छात्रों से मारपीट की जा रही है। बार्डर पार भी शेल्टर होम में जगह नहीं है। पोलैंड में प्रवेश भी कई दिनों की लाइन के बाद बड़ी मुश्किल से मिल रहा है।चोप बॉर्डर में बिलासपुर के स्टूडेंट्स
बिलासपुर की रिया अदिति लदेर और उसके साथ अन्य स्टूडेंट्स कीव से निकलकर लवीव होते हुए किसी तरह मंगलवार को चोप बॉर्डर पहुंचे गए हैं। दिन भर के सफर के बाद अब सभी स्टूडेंट्स चार घंटे से लाइन लगाए खड़े हैं। रास्ते भर उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ा और अब भी मुसीबत कम नहीं हुई है। यहां बॉर्डर में हजारों की संख्या में स्टूडेंट्स खड़े हैं। इनमें से कई की तबीयत कड़ाके की ठंड, खाना-पीना समय पर नहीं मिले और थकान के कारण बिगड़ गई है। सबसे बेहतर व्यवस्था हंगरी में है।

टैक्सी वाले भी करते रहे परेशान

जांजगीर की छात्रा मुस्कान तंबोली ने बताया कि कीव से 15-20 किलोमीटर पैदल चलने के बाद रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां यूक्रेनियन उन्हें ट्रेन में बैठने से रोकते रहे। किसी तरह धक्का मुक्की कर लवीव के लिए ट्रेन में बैठे। सोमवार रात भर सफर के बाद लवीव स्टेशन पहुंचे। यहां से उन्हें प्रति स्टूडेंट्स 10 हजार रुपए में कैब करना पड़ा। वहां भी टैक्सी वाले इधर-उधर छोड़कर भटकाते रहे। रुपए लेने के बाद भी टैक्सी वाले स्टूडेंट्स को परेशान कर रहे हैं। पैदल चलकर उन्हें दूसरे स्टेशन जाना पड़ा।

हंगरी में भारतीय दूतावास ने की व्यवस्था अच्छी

दरअसल, बॉर्डर में एक साथ यूक्रेनियंस भी पहुंच रहे हैं। ऐसे में भारतीय स्टूडेंट्स को भीड़ में परेशानी हो रही है। पोलैंड बॉर्डर में जो स्थिति बनी उसकी वजह भी यही थी, लेकिन हंगरी में हालात थोड़े बेहतर हैं। कुछ स्टूडेंड्स ने बताया कि यहां तक ट्रेन में सफर करने में समय लगा। फिर ज़ुहोनी के लिए ट्रेन टिकट लिए, बॉर्डर में इमिग्रेशन के लिए मात्र तीन घंटे लाइन लगाना पड़ी। ज़ूहोनी पहुंचने के बाद बुडापेस्ट के लिए मुफ्त टिकट मुहैया कराई जा रही है। बुडापेस्ट पहुंचने के बाद अपने आने की सूचना एंबेसी को देनी है, जहां अधिकारी-कर्मचारी और स्वयंसेवकों ने मुफ्त भोजन की व्यवस्था भी की है। यहां से उन्हें शेल्टर ले जाने की व्यवस्था भी की गई है। इस व्यवस्था के लिए स्टूडेंट्स ने भारतीय दूतावास को धन्यवाद भी दिया।

NACHA छत्तीसगढ़ी छात्रों के मदद के लिए आगे आई

इस बीच प्रवासी छत्तीसगढ़ियों के लिए अमेरिका में काम कर रही संस्था NACHA (नॉर्थ अमिरिका छत्तीसगढ़ एसोसिएशन) छत्तीसगढ़ी छात्रों के मदद के लिए आगे आई है। ये संस्था अलग-अलग तरह से बच्चों की मदद करने लगी हुई है।

NACHA ने बनाई 150 से अधिक बच्चों की सूची

NACHA की टीम लगातार छत्तीसगढ़ के स्टूडेंटस को अलग-अलग सूमह में एकत्रित कर उन्हें सुरक्षित करने में जुटी हुई है। NACHA के प्रेसीडेंट गणेश कर और उनकी टीम ने यूक्रेन में पढ़ने वाले छत्तीसगढ़ के 150 से अधिक बच्चों की सूची तैयार की है। उन्होंने बताया कि शुरूआत के दो दिन बच्चों की सूची तैयार करने में लगा। फिर उन्हें युद्ध के हालात में बंकर और मेट्रो में रहने की सलाह दी गई। उन्होंने पहले यूक्रेन के पूर्वी इलाकों के स्टूडेंट्स को बॉर्डर तक पहुंचाने की योजना बनाई। सोमवार को कर्फ्यू हटते ही कीव और खारकिव के साथ ही आसपास के बच्चों को ट्रेन, बस और टैक्सी के जरिए पूर्वी शहरों की ओर ले जाया गया।

यूक्रेनियन भी छोड़ रहे शहर, इंडियन स्टूडेंट्स से कर रहे दुर्व्यवहार

यूक्रेन में हमला होने के बाद कीव सहित पश्चिमी शहर के यूक्रेनियन अब देश छोड़कर भाग रहे हैं। ऐसे में रेलवे स्टेशनों में उनकी भीड़ बढ़ गई है। स्थानीय लोग ट्रेन में पहले जाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। इस स्थिति में यूक्रेनियन धक्का मुक्की और धमकी देने लगे हैं। उनके द्वारा इंडियन स्टूडेंट्स को ट्रेन में चढ़ने से रोका जा रहा है। यही वजह है कि भारतीय छात्रों को दूसरी ट्रेनों का सहारा लेना पड़ रहा है।

दहशत में हैं स्टूडेंट्स, गोलीबारी के बीच छोड़ना पड़ा कीव

गणेश कर ने बताया कि मंगलवार की सुबह युद्ध के दौरान एक भारतीय स्टूडेंट्स को गोली लगने से मौत की खबर आई, तब स्टूडेंट्स दहशत में आ गए। इस बीच इंडियन एंबेसी ने उन्हें तत्काल कीव छोड़ने का आदेश जारी कर दिया। लेकिन, बच्चों को बाहर निकालने की कोई व्यवस्था नहीं थी। ऐसे में बच्चे दौड़ते भागते रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां उन्हें बहुत परेशानी हुई। राहत की बात है कि कीव से सभी स्टूडेंट्स अब बाहर निकल गए हैं।

यूक्रेन-रूस बॉर्डर के इलाकों में फंसे हैं छत्तीसगढ़ के 50 से अधिक स्टूडेंट्स

उन्होंने बताया कि मंगलवार को उन्होंने खारकिव, सम्मी सहित ईस्ट जोन में फंसे बच्चों की जानकारी जुटाई और उनसे संपर्क किया, तब पता चला कि यूक्रेन के पश्चिमी शहर और रूस बॉर्डर के बीच छत्तीसगढ़ के 50 से अधिक बच्चे अब भी फंसे हुए हैं। जिन्हें युद्ध की हालात में बाहर निकालना मुश्किल है। इसके लिए उन्होंने रूस सरकार की मदद से रूस बॉर्डर से निकालने में आसानी होने की बात कही है।

खारकिव से आज निकलेंगे स्टूडेंट्स

इधर, बमबारी और कर्फ्यू के बीच छत्तीसगढ़ समेत भारत के अलग-अलग राज्यों के हजारों बच्चे खारकिव में फंसे हैं। बुधवार की सुबह उन्हें रेलवे स्टेशन पहुंचने कहा गया है। उम्मीद है कि सभी बच्चे सुरक्षित पूर्वी शहरों की तरफ आ सकेंगे। दरअसल, युद्ध के हालात में स्टूडेंट्स अपनी रिस्क पर निकल रहे हैं। ऐसे में उन्हें सुरक्षा का भी खतरा लग रहा है।

स्थानीय एजेंट से ले रहे मदद

NACHA के प्रेसीडेंट गणेश कर ने बताया कि उनके संपर्क में छत्तीसगढ़ एनआरआई परिवार हैं, जिनके साथ मिलकर यूक्रेन में फंसे स्टूडेंट्स को निकालने प्रयास किया जा रहा है। इसके साथ ही बॉर्डर में भी उनकी टीम के लोग मदद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यूक्रेन में स्थानीय एजेंट के सहयोग से बच्चों को सुरक्षित करने और राहत पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।