कोरबा । जिले के वन जैवविविधता से समृद्ध है। 25 मार्च को वन मंडल कोरबा के पसरखेत के जंगल से उड़न गिलहरी आबादी वाले क्षेत्र में आ गई जिसे वन विभाग द्वारा रेस्क्यू किया गया। आज से पहले भी उड़न गिलहरी कोरबा के जंगल में देखी गई थी।
उड़ने वाली गिलहरी की लंबाई 3 फिट के करीब है। इस प्रजाति की गिलहरी को वैज्ञानिक भाषा में पेट्रो मियानी कहते हैं। इस प्रजाति की गिलहरी फल, फूल, बीज, गोंद, मशरूम, पक्षियों के अंडे और कीड़े-मकोड़े खाकर जीवन जीती हैं । वह अपने पंजों के फर को पैराशूट की तरह इस्तेमाल कर उड़ सकती है। सामने और पीछे के पैरों के बीच फैली त्वचा व झिल्ली का उपयोग कर लंबी दूरी की छलांग लगा सकती है। फुर्तीली व शर्मीली इतनी कि हल्की सी आहट पाते ही पलभर में खुद को छिपा भी लेती है। गिलहरी की यह प्रजाति बेहद शर्मिले स्वभाव की होती है। किसी भी जीव की आहट पाते ही कुछ ही क्षणों में खुद को पत्तियों, पेड़ के खोल या चट्टान के गड्ढों में बड़ी फूर्ति से छिपा लेती है। इनके घोसले पेड़ की छाल, फर, काई और पत्तियों के साथ बने होते हैं। यही वजह है कि यह अब तक नहीं देखी जा सकी। गहरे धूसर रंग की यह गिलहरी रात्रिचर जीवों में शामिल है। उडऩ गिलहरी को भोजन के लिए घने वन से बाहर आना होता है। ऐसे में कई बार भटक कर वो आबादी या सड़क के आसपास पहुंच जाती हैं और लोगों की नजर में आ जाती हैं। गर्मी के मौसम में जंगल में आग की घटना बहुत बढ़ जाती है उसका सीधा प्रभाव इन जीव जंतुओं पर सीधा पड़ता है। कुछ जीव जो तेज गति से भागने में सक्षम होते है वे तो अपनी जान बचा सकते है परंतु सभी नही। इस मौसम में जंगल में सूखे पत्ते बारूद की तरह काम करते है। महुआ और तेंदू पत्ता के लाभ के लिए कुछ लोगों द्वारा आग लगा दिया जा रहा है । नवंबर 2019 और जून 2020 के बीच छत्तीसगढ़ के जंगलों में आग की 38,106 घटनाएं हुईं। हर साल इन आग की घटनाओं में तीब्र वृद्धि हो रही है। इन जैसे दुर्लभ जीव भोजन के लिए फल और कीड़ो पर आश्रित है आग से कीड़ो के मर जाने से इनके भोजन में भी भारी कमी आती है। इस तरह वन पारिस्थिकीय को देखने पर सब आपस में जुड़े मिलते है। वनों को बचाने से ही जैव विविधता को बचाया जा सकता है।