जशपुर । राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाली विशेष संरक्षित जनजाति पहाड़ी कोरवा का परिवार अपने मुखिया की मौत का इंतजार कर रहा है। भालू के हमले में घायल होने के बाद परिवार का इलाज में सबकुछ बिक गया। लेकिन इलाज पूरा नहीं हुआ अब अस्पताल 1 लाख की डिमांड और कर रहा है। ऐसे में बूढ़ी मां, पत्नी और बच्चे उसे मरता देखने के लिए मजबूर हैं।
पूरा मामला जशपुर जिले के बगीचा ब्लॉक का है। पहाड़ी कोरवा परिवार बग़ीचा ब्लॉक के ग्राम पंचायत हर्राडीपा में जंगलों के अंदर रहता है। महेंदर राम पहाड़ी कोरवा 10 दिनों पहले अपने खेतों में काम करने गया था। इसी बीच भालू से उसका सामना हो गया। भालू ने महेंदर राम के सिर और चेहरे पर वार किया। महेंदर का जबड़ा पूरी तरह उखड़ गया। किसी तरह वह अपनी जान बचाकर वहां से भागा और घर पहुंचा। परिवार के लोगों ने उसे पहले सन्ना अस्पताल पहुंचाया। जहां प्राथमिक उपचार के बाद उसे अम्बिकापुर जिला अस्पताल रेफर किया गया। अंबिकापुर में जिला अस्पताल वालों ने इलाज में असमर्थता जताते हुए ने उसे रायपुर ले जाने कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया। किसी तरह परिवार वालों की मिन्नतों के बाद उसे अम्बिकापुर होली क्रॉस अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। पर इन दिनों 10 दिन के इलाज में घर के गाय बैल बकरी सब बिक चुके हैं और उसके जबड़े का इलाज बाकी है। अस्पताल 1 लाख रुपए की डिमांड कर रहा है। परिवार घर बेचने को भी तैयार है लेकिन समस्या यह है कि जंगल के भीतर आदिवासी जमीन खरीदने को कोई तैयार नहीं है। ऐसे में परिवार अब उसकी मौत का इंतजार कर रहे हैं। सन्नाटा पसरा है, रह रह कर घर से बूढ़ी मां और परिवार के बिलखने की आवाज गूंज रही है।
वनविभाग ने भी अपनी जिम्मेदारियों से कर ली इतिश्री
अब तक सरकार की ओर से भालू से घायल के नाम पर 10 हजार रुपये दिए हैं। इसके बाद वनमण्डल ने घायल की सुध लेने की सोची तक नहीं। वनविभाग के नियमों के अनुसार भालू के हमले से घायल होने पर 59 हजार रुपए मुआवजे का प्रावधान है। लेकिन विभाग ने 10 हजार देकर ही अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। भालुओं के हमले को रोकने के लिए सरकार ने जामवंत योजना बनाई थी। जो बुरी तरह फेल हो गई। अब परिवार को भरोसा है की युवक की मौत के बाद वनविभाग पूरा मुआवजा देगा। जिससे वे अपने मुखिया का अंतिम संस्कार कर पाएंगे।
3 विधायक एक सांसद सभी आदिवासी लेकिन इस आदिवासी की सुध लेने वाला कोई नहीं
वर्तमान में जशपुर जिले में कांग्रेस से रामपुकर सिंह, यूडी मिंज और विनय भगत विधायक है और गोमती साय लोकसभा की सांसद है। जशपुर आदिवासी बाहुल्य इलाका है। ऐसे में यहां के जनप्रतिनिधि भी हमेशा इसी समुदाय के बीच से ही चुनकर आते हैं। आदिवासियों में उम्मीद होती है की अब उनकी बात सुनी जाएगी। विपरीत परिस्थितियों में कोई मदद मिलेगी। लेकिन नेता तो नेता हैं। परिवार 10 दिनों से अपने घर के मुखिया के मौत का इंतजार कर रहा है। लेकिन मदद के लिए कोई नहीं आया।
सरकारी योजनाएं कागजों पर पहाड़ियों का कोई नहीं
इस बीच सवाल उठता है कि पहाड़ी कोरवाओं की कम होती जनसंख्या और उस पर सरकारी दावे खूब लुभाते हैं। पल में ऐसा लगता है कि व्यवस्थाओं का क्या कहना! पर जब हकीकत से वास्ता पड़ता है तो यही लगता है कि “कहाँ है सरकार! कहाँ है प्रशासन!” जो यहां पहाड़ी कोरवा परिवार इलाज के लिए रुपये की कमी के कारण अपने मुखिया के मौत का इंतजार करने को मजबूर है। घायल महेंदर ने भी उम्मीद छोड़ दी है। वह बस किसी तरह अपने आखिरी दिन गिन रहा है।
सोर्स -मुनादी न्यूज