कोरबा-कटघोरा। जिले के कटघोरा वन मंडल पर शासन की मंशानुरूप बेरोजगार इंजीनियरों को ठेका कार्य प्रदान कर उन्हें रोजगार देने के टेंडर में जहां धांधली और गड़बड़ी का आरोप लगा है वहीं अब ठेका प्राप्त इंजीनियरों से वसूली का भी आरोप लग रहा है।

बेरोजगार इंजीनियरों के बीच से ही खबर निकली है कि ठेका प्राप्त किये इन इंजीनियरों से अंतर की राशि नगद में जमा करने पर ही प्रोसेस आगे बढ़ाने कहा जा रहा है। जैसे किसी बेरोजगार इंजीनियर ने जिस काम के लिए बिलो(कम दर पर) में टेंडर डाला है, उसे उस कार्य की कुल राशि में से नियमानुसार 10 प्रतिशत की छूट तो दे रहे हैं लेकिन 10 प्रतिशत के अतिरिक्त की अंतर राशि को जमा करने कहा जा रहा है। इंजीनियरों ने बताया कि यदि किसी ने 15 प्रतिशत बिलो में टेंडर लिया है तो 10 प्रतिशत सरकारी छूट को छोड़कर शेष 5 प्रतिशत राशि नगद मांगी जा रही है। वन विभाग के अधिकारी इसे नियमों के तहत लेना बता रहे हैं जबकि जानकारों के बताए अनुसार पीडब्ल्यूडी जैसे निर्माण विभाग में भी अंतर की राशि जमा करने/कराने का प्रावधान नहीं है। वन अधिकारियों पर आरोप है कि बेरोजगार इंजीनियरों को परेशान करने के लिए यह किया जा रहा है और इस तरह का कोई नियम/निर्देश शासन का भी नहीं है।
इनका कहना है कि बेरोजगार इंजीनियरो को रोजगार देने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रावधान किया है पर इसमें भी अपने हिसाब से नियमों को तोड़-मरोड़ कर/छिपाकर की जा रही रुपयों की मांग पर रोक लगाई जाए। आखिर वे बेरोजगार हैं, काम शुरू करने के लिए रुपयों की व्यवस्था करें या अंतर राशि जमा करने की दबावपूर्ण मांग को पूरा करने हाथ फैलाकर कर्ज लें? इसी तरह का कारनामा कोरबा वन मंडल में भी हो रहा है। कटघोरा वन मंडल में 40 से अधिक कार्यो का ठेका बेरोजगार इंजीनियरों के लिए जारी होना बताया गया है।
0 पर्दे के पीछे कोई और तो नहीं..?
यहाँ यह भी सवाल है कि कहीं पूरे मामले में पर्दे के पीछे कोई और तो खेल नहीं हो रहा। बताया जा रहा है कि वन मंडल में कुछ बेरोजगार इंजीनियरों ने 35 से 40 प्रतिशत बिलो में टेंडर डाला है और अंतर की राशि भी कई ने जमा करा दी है। अब यह समझने वाली बात है कि इतनी रकम खर्च करने के बाद कार्य की गुणवत्ता/कार्य पूर्णता किस हद तक होगी? यहीं पर सवाल कायम है कि कई बेरोजगार इंजीनियर काम हासिल करने के बाद कुछ राशि लेकर ठेका दूसरे ठेकेदार को दे देंगे, अब वह काम किया या नहीं किया यह देखने की जहमत कौन उठाएगा जबकि करोड़ों के काम खुद वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों ने सांठगांठ से कागजों में या आधे-अधूरे ही निपटा कर राशि की बंदरबाँट कर ली हो।