हसदेव अरण्य उजाड़ने आमादा अडानी फाउंडेशन की राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन लिमिटेड को कोल ब्लॉक प्रभावित गांवों की जनसुविधाओं से नहीं सरोकार ,हसदेव एक्सप्रेस की पड़ताल में प्रभावित ग्रामीणों ने सुनाई पीड़ा,बोले -25 लाख की जगह 10 लाख प्रति एकड़ दिया मुआवजा,गांवों में सड़क ,बिजली ,नाली ,पेयजल की समस्याएं बरकरार ….देखें ग्राउंड रिपोर्ट

हसदेव एक्सप्रेस न्यूज सरगुजा ।सुरम्य सघन वनों से आच्छादित एवं जैव विविधताओं से भरपूर हसदेव अरण्य को
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (अडानी फाउंडेशन ) के परसा ओपन कोल माइंस (ब्लाक ) 2 के विस्तार से बचाने 5 गांवों के 841 .5 हेक्टेयर रकबा के 1 लाख नग पेंड को बचाने भले ही तमाम संघर्षों हाईकोर्ट की फटकार के बाद ग्रामीणों को आंशिक सफलता जरूर मिल गई है लेकिन अभी भी परसा ईस्ट केते बासन खनन परियोजना स्टेज -1 एवं 2 से प्रभावित ,विस्थापित दर्जनों गांवों के आदिवासियों को अडानी फाउंडेशन से नियमानुसार मुआवजा ,ग्राम के समुचित विकास के लिए पर्याप्त विद्युत ,नाली , सड़क ,जल रहित शौचालय आदि सुविधाओं की दरकार है। हसदेव की पड़ताल में ग्रामीणों ने प्रबंधन पर शोषण उपेक्षा एवं प्रशासन पर मौन स्वीकृति का आरोप लगाया।

यहाँ बताना होगा कि सुरम्य सघन वनों से आच्छादित एवं जैव विविधताओं से भरपूर हसदेव अरण्य का इलाका छत्तीसगढ़ का फेफड़ा कहा जाता है।सन 2009 में तत्कालीन यूपीए सरकार में इसे नो गो एरिया घोषित किया गया था।यानि इस क्षेत्र में खनन गतिविधियों को अनुमति नहीं थी। साल 2012 में जब परसा ईस्ट केते बासन खनन परियोजना को स्टेज -2 की वन स्वीकृति जारी की गई थी इस दौरान भी उसमें यह शर्त शामिल की गई थी कि हसदेव में किसी भी नई कोयला खदान को अनुमति नहीं दी जाएगी। केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद जब एनडीए की सरकार अस्तित्व में आई तो हसदेव अरण्य क्षेत्र में 6 कोल ब्लॉक खोलने की कवायद शुरू कर दी गई थी। जिसे देखते हुए सन 2015 में राहुल गांधी ने हसदेव अरण्य के समस्त ग्राम सभाओं के लोगों को संबोधित करते हुए उनके जल- जंगल -जमीन को बचाने के लिए संकल्प लिया था। यह भी कहा था कि वे इस संघर्ष में उनके साथ हैं। इन सबके बावजूद केंद्र सरकार अपने इरादों पर अडिग रही। और सुनियोजित तरीके से भोले भाले आदिवासियों को धोखे में रख फर्जी तरीके से ग्राम सभा के जरिए वन भूमि के डायवर्सन की प्रक्रिया पूरी करा ली।जब ग्रामीणों को इसकी भनक लगी तो हसदेव अरण्य समिति के बैनर तले आदिवासी ग्रामीण फर्जी ग्राम सभा दस्तावेजों को रद्द कर दोषी अधिकारियों पर लगातार कार्रवाई की मांग करते रहे। 2018 से हसदेव अरण्य क्षेत्र के आदिवासी समुदाय आंदोलन करते आ रहे हैं। इन मांगों को लेकर फतेहपुर में सन 2019 में 73 दिनों तक धरना प्रदर्शन किया गया था। पर प्रशासन की तरफ की कोई पहल या कार्रवाई नहीं की गई।कोयला खनन परियोजनाओं के विरोध में छत्तीसगढ़ के सरगुजा और कोरबा जिले के 30 गांवों के 350 ग्रामीण हफ्तों तक पैदल मार्च कर राजधानी पहुंचे थे। ग्रामीणों ने आदिवासियों ने इसका नाम हसदेव बचाओ पदयात्रा दिया था। ग्रामीणों ने बिना ग्राम सभा के जमीन अधिग्रहण को लेकर जमकर आक्रोश जताया था। राज्यपाल अनुसुइया उइके से भी मुलाकात की थी। लेकिन नतीजा सिफर रहा। अधिकारी अपनी ओछी चाल में कामयाब रहे और निहित स्वार्थ के लिए फर्जी ग्राम सभा का प्रस्ताव भेज दिया । जब तक ग्रामीणों को इसकी जानकारी मिली तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को सरगुजा स्थित परसा कोल ब्लॉक में खनन कार्य शुरू करने के लिए केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से क्लियरेंस मिल गई । लिहाजा परसा ओपन कोल ब्लॉक के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को 841.548 हेक्टेयर रकबा आवंटित कर दिया गया था। इस बीच प्रबंधन ने अप्रैल 2022 से अगस्त 2022 के मध्य पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में 4500 से अधिक पेड़ काट डाले । फोर्स की मौजूदगी में पेंड काटे गए। तब स्थानीय प्रशासन सरकार पर कार्पोरेट दबाव हावी होने लाखों पेंड काटने की मौन स्वीकृति के गम्भीर आरोप लगे थे। 2 मार्च से हसदेव अरण्य के साल्ही पँचायत के गाँव हरिहरपुर में स्थानीय ग्रामीणों की हाथ में तिरंगा एवं संविधान की प्रतियां लेकर बेमियादी हड़ताल के बावजूद पेंड कटाई की गई थी। जिसे लेकर पेशा एक्ट का खुला उल्लंघन बताते हुए स्थानीय ग्रामीण लाठी डंडों से लैस होकर पेंड कटाई के खिलाफत में उतर आए थे। मामला हाईकोर्ट तक जा पहुंचा था। सरकार से जवाब तलब हुआ। आखिरकार भारी विरोध के बीच राज्य शासन ने परसा कोल ब्लॉक को लेकर बड़ा निर्णय ले ही लिया। वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अवर सचिव के .पी.राजपूत ने परसा ओपन कास्ट कोल ब्लॉक को निरस्त करने र भारत सरकार को पत्र लिखा है। इस पत्र में राज्य सरकार ने व्यापक जन विरोध और कानून व्यवस्था बिगड़ने का हवाला दिया । । वन महानिरीक्षक भारत सरकार को छत्तीसगढ सरकार की तरफ से 31 अक्टूबर 2022 को लिखे पत्र में साफ कहा गया है कि


सरगुजा के परसा ओपन कास्ट कोल माइंस को लेकर लंबे समय से विरोध चल रहा है। इस मामले राजनीतिक और स्थानीय स्तर पर विरोध हो रहा है। पिछले कई महीनों से पेड़ों का कटाई, पर्यावरण का नुकसान होने और व्यवस्थापन संबंधी मुद्दों को लेकर स्थानीय आदिवासी विरोध जता रहे हैं। विरोध के बीच अब राजस्थान को आवंटित परसा कोल ब्लाक को राज्य सरकार ने निरस्त करने का फैसला लिया है


वन भूमि पर ओपन कोल माइंस के लिए दी गयी स्वीकृति को रद्द करें। बहरहाल इन सबके बीच प्रभावित गांवों में प्रबंधन की सामाजिक उत्तरदायित्वों को लेकर लापरवाही बरतने जन सुविधाओं की अनदेखी करने का मामला हसदेव एक्सप्रेस की पड़ताल में सामने आया ।

साल्ही ,परसा ,हरिहरपुर ,जनार्दनपुर फतेहपुर में समस्याओं का अंबार,न प्रबंधन सुन रही न सुन रही सरकार 👇

हसदेव एक्सप्रेस की टीम सबसे पहले साल्ही पहुंची यहाँ ग्रामीणों ने प्रबंधन पर वादाखिलाफी का गम्भीर आरोप लगाया। सड़क ,समुचित बिजली ,नाली विस्तार , कोल बेरिंग एक्ट लागू होने पर नाराजगी सहित 25 से 30 लाख की जगह शासन प्रशासन की अनदेखी से महज 10 लाख रुपए की दर से मुआवजा दिए जाने की बात कही । हरिहरपुर के आगे स्टेज -1 की कोल ब्लॉक संचालित है लेकिन स्टेज -2 के विरोध के बाद गांव में पक्की सड़क तक नहीं पहुंची ।

हरिहरपुर में संविधान की पांचवी अनुसूची को प्रदर्शित करता साइन बोर्ड,कच्ची सड़कें

ग्राम परसा में भी प्रबंधन पर प्रभावितों ने 25 लाख की जगह 10 लाख की दर से मुआवजा देने सड़क बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी सहित गांव में कोयले का गुब्बार उड़ाते प्रबंधन के भारी वाहनों से होने वाली परेशानियां बयां की ।

ग्राम परसा

इसी तरह फतेहपुर में लगी अधिकांश सोलर स्ट्रीट लाईट बंद पाई गईं। ग्राम में पेयजल सामुदायिक स्वच्छता ,स्वरोजगार की दिशा में किसी भी तरह के सार्थक पहल नजर नहीं आए।

फतेहपुर की बंद स्ट्रीट लाईट से सड़क पर छाया अंधेरा

कोल ब्लॉक -2 में प्रभावित समीपस्थ सूरजपुर जिले के प्रेमनगर ब्लाक के ग्राम जनार्दनपुर में तो अडानी समूह ने जन सुविधाओं से मानो मुंह ही मोड़ लिया।

जनार्दनपुर की जर्जर सड़कें

जर्जर सड़कें ,खराब पड़ी सोलर स्ट्रीट लाईट ,प्रबंधन की अनदेखी पर स्वयं 50 हजार लगा एवं श्रमदान कर अधूरे पुल का निर्माण करने की बात पर ग्रामीणों ने हसदेव एक्सप्रेस से साझा की।

बंद पड़ी स्ट्रीट लाईट

सभी प्रभावित ग्रामों में प्रभावितों ने बताया कि स्थानीय प्रशासन को भी उनकी समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है तभी अधिकारी सुध लेने तक नहीं पहुंचते।

जनार्दनपुर में ग्रामीणों द्वारा श्रमदान चंदे इक्कठा कर पुलिया का बनाया पुलिया

2019 में जारी हुई थी स्टेज -1 की स्वीकृति ,ग्रामीणों ने की थी आपत्ति 👇

राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड के लिए परसा कोयला खदान स्टेज-1 की स्वीकृति 13 फरवरी 2019 को जारी हुई थी। इस पर ग्रामीणों ने अपनी आपत्तियां लगाई थी। तय प्रावधानों के मुताबिक किसी भी परियोजना हेतु वन स्वीकृति के पूर्व ” वनाधिकार मान्यता कानून “के तहत वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की समाप्ति और ग्रामसभा की लिखित सहमति आवश्यक है। पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्रामसभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान को लागू करना आवश्यक है जिसका पालन नहीं किया गया । ग्रामीणों का स्पष्ट कहना था कि आज भी उनके वनाधिकार के दावे लंबित हैं और 24 जनवरी 2018 ग्राम हरिहरपुर , 27 जनवरी 2018 साल्ही एवं 26 अगस्त 2017 को फतेहपुर गांव में दिखाई गई ग्रामसभाएं फर्जी थी ।यही नहीं
पांचवी अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी कानून से भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया के पूर्व ग्रामसभा से अनिवार्य सहमति के प्रावधान को लागू करना आवश्यक है जिसका पालन नहीं किया गया । इसकी जांच के लिए मुख्यमंत्री और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपे गए थे ।

जानें प्रभावितों की पीड़ा 👇

प्रबंधन ने की वादाखिलाफी

एक तो यहां नियम विरुद्ध कोल बेरिंग एक्ट लागू कर दिया गया। ऊपर से हमें 25 लाख की जगह 10 लाख प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दिया गया। नोकरी व बसाहट का प्रावधान नहीं होने मुआवजा में छलावा होने की वजह से अधिकांश ने लेने से इंकार कर दिया।

प्रबंधन ने बुनियादी बिजली ,शौचालय,नाली जैसी बुनियादी सुविधाओं की भी अनदेखी की । यही वजह है हमने इस शोषण के विरुद्ध दूसरे कोल ब्लॉक का विरोध किया।

जगेश्वर सिंह उइके ,साल्ही

कम दिया मुआवजा ,सुविधाओं की दरकार

मेरा करीब 4 एकड़ जमीन प्रभावित हुआ है। 33 लाख का मुआवजा बना। कायदे से 25 लाख प्रति एकड़ की दर से मुआवजा बनना था,भूमि की किस्म में कूटरचना कर कम मुआवजा दिया गया।

यहाँ प्रबंधन ने सड़क ,बिजली ,पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की सुध नहीं ली । प्रबंधन के वाहन बेरोकटोक कोयला उड़ाते दौड़ रहे।प्रदूषण के साथ भय बना रहता है। सब अधिकारियों की मिलीभगत की परिणिति है।

मनोहर राम उईके,परसा

न सड़क बना सके न नाला ,श्रमदान से हमने बांधा पुल

अडानी समूह कोल ब्लॉक लेकर सुविधाओं के नाम पर सिर्फ छलावा कर रही । सड़क जर्जर है ,सोलर लाइट खराब । एक पुलिया के एप्रोच तक बंधान न कर सकी।

प्रबंधन की अनदेखी से हमने श्रमदान व चंदे इक्कठे कर पुलिया आवागमन योग्य बनाया।अधिकारियों को समस्याओं से सरोकार नहीं।

पूरन सिंह ,जनार्दनपुर