दिल्ली। सीबीएसई ने देशभर के छात्रों के लिए एक बेहतरीन पहल शुरू की है. उसने हाल ही में एक सर्कुलर जारी है, जिसमें अपने सभी संबद्ध स्कूलों को ‘शुगर बोर्ड’ स्थापित करने का निर्देश दिया है।
इसका उद्देश्य बच्चों को अधिक चीनी के सेवन से होने वाले खतरों के बारे में शिक्षित करना है। दरअसल, सीबीएसई ने ये कदम बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज की बढ़ती समस्या को देखते हुए उठाया है, जो पहले सिर्फ वयस्कों में ही देखने को मिलती थी।
सीबीएसई ने जो सर्कुलर जारी किया है, उसमें कहा गया है ‘पिछले दशक में बच्चों में टाइप 2 मधुमेह के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण स्कूली वातावरण में मीठे स्नैक्स, पेय पदार्थ और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की आसानी से उपलब्धता है’. सर्कुलर में ये भी बताया गया है कि 4 से 10 साल की उम्र के बच्चों के दैनिक कैलोरी सेवन में चीनी लगभग 13 प्रतिशत है और 11 से 18 साल की उम्र के बच्चों में यह 15 प्रतिशत है, जबकि बच्चों में यह सिर्फ 5 प्रतिशत होनी चाहिए।
जुलाई के मध्य तक देनी होगी रिपोर्ट
सीबीएसई की इस ‘शुगर बोर्ड’ स्थापित करने की पहल का उद्देश्य छात्रों को स्वस्थ भोजन करने के बारे में शिक्षित करना है। इस बोर्ड के माध्यम से बच्चों को ये बताया जाएगा कि जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक जैसे आमतौर पर खाए और पिए जाने वाले खाद्य पदार्थों में चीनी की मात्रा कितनी है, ज्यादा चीनी खाने से क्या नुकसान हो सकते हैं और उसका विकल्प क्या है। सर्कुलर में सीबीएसई स्कूलों को ‘शुगर बोर्ड’ के बारे में जागरूकता सेमिनार और कार्यशालाएं आयोजित करने और जुलाई के मध्य तक किए गए प्रयासों पर रिपोर्ट देने को कहा गया है।
क्या कहते हैं एजुकेशन एक्सपर्ट?
शिक्षा से जुड़े कई विशेषज्ञों ने सीबीएसई की इस पहल पर अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। कुछ लोगों ने इस पहल की तारीफ की है तो कुछ ने बताया है कि पहले भी ऐसे प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन उससे कोई फायदा नहीं हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक स्कूल शिक्षक ने कहा कि सिर्फ शुगर बोर्ड इस समस्या का समाधान नहीं कर सकता। सिर्फ जानकारी दे देने भर से व्यवहार में बदलाव की गारंटी नहीं मिलती है। उन्होंने आगे कहा कि स्कूलों में और उसके आसपास क्या बेचा जाता है, इसपर सख्त नियम के बिना शुगर बोर्ड के प्रभाव सीमित हो सकते हैं।
पहले भी जारी हो चुके हैं सर्कुलर
दरअसल, शैक्षणिक संस्थानों में स्वस्थ भोजन को बढ़ावा देने का प्रयास लंबे समय से किया जा रहा है, लेकिन उसमें कुछ खास सुधार नहीं हुआ है। साल 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) को स्कूलों में और उसके आसपास स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले खाद्य पदार्थों की बिक्री को प्रतिबंधित करने वाले दिशानिर्देश लागू करने का निर्देश दिया था। इसके अलावा साल 2016 में शिक्षा निदेशालय ने भी एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें स्कूलों को छात्रों और उनके पैरेंट्स को वसा, चीनी और नमक से भरपूर खाद्य पदार्थों के नकारात्मक प्रभावों के बारे में जागरूक करने की सलाह दी गई थी।