देवी गंगा ,देवी गंगा, लहर तुरंगा ….हर्षोल्लास से मनाया गया भोजली का पर्व,पोंडीबहार ,सलिहाभांठा में निकली शोभायात्रा

कोरबा। नगर सहित अंचल में भोजली का त्योहार हर्षोल्लास एवं धूमधाम से मनाया गया। भोजली मित्रता का प्रतीक है। जिस तरह युवा पाश्चाात्य संस्कृति का अनुसरण करते हुए फ्रेन्डशिप डे मनाते हैं और एक दूसरे के कलाई में फ्रेंडशिप बैंड बांधकर मित्रता का इजहार करते हैं। उसी तरह प्राचीन काल से छत्तीसगढ़ में भोजली देकर मित्रता को प्रगाढ़ करने की परंपरा है। लोकगीत व भोजली विसर्जन के दौरान महिलाएं सामूहिक रूप से गीत गाती हैं, जिसे भोजली गीत कहते हैं।

रक्षाबंधन के दूसरे दिन सोमवार को भोजली का पर्व शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। छत्तीसगढ़ी संस्कृति का निर्वाह करते हुए लोगों ने अपने घरों में रोपे गए भोजली को घर से नदी तक शोभायात्रा निकालकर ग्राम देवता की पूजा-अर्चना की और लोगों ने मितान बदकर सीताराम भोजली कहकर एक-दूसरे का अभिवादन किया। वहीं कोरबा के पोंडीबहार ,करतला विकासखण्ड के ग्राम पंचायत सलिहाभांठा में भोजली की पूजा अर्चना पश्चात शोभायात्रा के साथ भोजली का स्थानीय तालाब में विसर्जन किया गया। पोंडीबहार व ग्राम पंचायत सलिहाभांठा दोनों में हनुमान मंदिर स्थित तालाब में भोजली का विसर्जन किया गया। ग्रामीण अंचलों में भोजली का पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि नागपंचमी के दिन छोटे बच्चे चुरकी ,टुकनी में मिट्टी लाकर उसमें गेहूं की बिहई भिगोकर बोते हैं। फिर रक्षाबंधन के दूसरे दिन उसे नदी में विसर्जित करते हैं।

खुशहाली और अच्छी फसल की कामना के साथ किया भोजली विसर्जन

देवी गंगा, लहर तुरंगा, अहो देवी के जसगीत धुनो पर भोजली का जगह-जगह पूजा अर्चना कर विसर्जन किया गया। नगर व क्षेत्र के लगभग सभी ग्रामो में शाम 4 बजे घरो से भोजली निकाल दी गई जिसके बाद चौक चौराहो में पूजा अर्चना कर तथा हल्दीपानी डालकर खुशहाली की कामना व अच्छी फसल की मनोकामना के साथ विजर्सन किया गया। इस बार सभी का भोजली अच्छे ढ़ंग से उगे हुये थे। सरसो की भांति सुनहरी भोजली थी। लगभग डेढ़ से दो फीट भोजली देखने लायक थी। ऐसी मान्यता है कि अगर भोजली अच्छी होती है तो क्षेत्र में समृध्दि भी आती है। इसका उदाहरण भी देखने को मिल रहा है क्षेत्र में लगातार बारिश हो रही है और धान सहित अन्य फसले लहलहा रहे है। किसान हर्षित मुद्रा में है।

पारंपरिक तरीके से मनाया गया भोजली का त्यौहार

रक्षा बंधन के दूसरे दिन सोमवार को भोजली पर्व धूमधाम से मनाया गया। टोकरी में उगाए गए भेाजली का विसर्जन विधि विधान से किया गया। भोजली उगाकर लोग प्रकृति देवी से अपनी कृपा प्रदान कर अच्छी वर्षा का आर्शाीवाद मांगा। वैसे इसकी शुरूवात तो हरेली त्योहार के दिन अर्थात सावन के दूसरे पक्ष के शुरूवात के दिन से होती है। इस दिन लोग भोजली की बुआई करते हैं। भोजली गेहूं का पौधा होता है, कई जगह जौ का भी उपयोग किया जाता है। नये छोटे छोटे टोकरी में मिट्टी और उर्वरा शक्ति के लिए कम्पोस्ट को भरा जाता है और उमसें गेंहू छिडक़र किसी अंधेरे स्थान पर रख दिया जाता है। पूरे पंद्रह दिनो बाद रक्षाबंधन के दूसरे दिन बड़े ही हर्षोल्लास के साथ इसे निकाला जाता है। इसेे भोजली कहते है, जिसका रंग सुनहरा होता है।