नहीं रहे अंग्रेजों के जमाने के ‘जेलर ‘300 से ज्यादा फिल्मों में काम करने वाले मशहूर हास्य अभिनेता असरानी ने 84 की उम्र में कहा अलविदा ,जानें उनकी यादगार सफर…..

मुंबई। अंग्रेजों के जमाने के जेलर यानी असरानी 84 वर्ष की उम्र में हमें अलविदा कह गए हैं. अब वो ठहाका मार हंसी कभी सुनाई नहीं देगी.दीवाली के दिन ही यानी सोमवार को उनका निधन हुआ है। मुंबई के अस्पताल में वो कई दिनों से भर्ती थे। बताया गया है कि फेंफड़ों की समस्या के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन इसके बाद 20 अक्टूबर की शाम को करीब 4 बजे उनका निधन हो गया।

बॉलीवुड के लिए सोमवार का दिन बेहद दुखद है। अभिनेता असरानी (Asrani) का 84 साल की उम्र में निधन हो गया है। दीवाली के दिन ही यानी सोमवार को उनका निधन हुआ है। मुंबई के अस्पताल में वो कई दिनों से भर्ती थे। बताया गया है कि फेंफड़ों की समस्या के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन इसके बाद 20 अक्टूबर की शाम को करीब 4 बजे उनका निधन हो गया। 300 से ज्यादा फिल्मों में काम करने वाले असरानी ने अपने फिल्मी करियर में इतनी यादगार फिल्में दी हैं कि दर्शक आज भी निभाए गए उनके किरदारों को नहीं भूलते हैं।

👉घर से मुंबई भाग आए थे असरानी

असरानी का जन्म 1941 को राजस्थान के जयपुर में हुआ था। उनका पूरा नाम गोवर्धन असरानी (Goverdhan Asrani) था। असरानी जयपुर में पैदा हुए और यहीं पर उनके पिता एक कार्पेट कंपनी में मैनेजर के पद पर नौकरी करते थे। अपनी पढ़ाई लिखाई भी उन्होंने यहीं की। लेकिन असरानी का झुकाव फिल्मों की तरफ ज्यादा था। इसके बाद उन्होंने पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने का मन बनाया और एक्टिंग करने का सोचा। उन्होंने दो तीन साल तक आकाशवाणी में किया और फिर पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में एडमिशन ले लिया। बताया जाता है कि असरानी जहां एक्टिंग सीख रहे थे वहीं पर डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी आया करते थे। इसी बीच उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की मुखर्जी की टीम में राइटर गुलजार उनके साथ थे उन्हें लगा कि शायद बात बन जाए। उन दिनों ऋषिकेश मुखर्जी अपनी फिल्म गुड्डी के लिए जया भादुरी को खोज रहे थे। धीरे धीरे बात बन गई और ऋषिकेश मुखर्जी ने असरानी को वही रोल दिया जो वो चाहते थे। हालांकि इससे पहले साल 1967 में असरानी ने हरे कांच की चूड़ियां नाम की फिल्म से डेब्यू कर लिया था। लेकिन वो फिल्म से ना तो असरानी को कोई फायदा हुआ और ना कोई बात नहीं। इसके बाद उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की सत्यकाम में भी काम किया। लेकिन वो इंतजार कर रहे थे कि कोई अच्छी फिल्म मिल जाए, जिससे उनके करियर को बूस्ट मिल जाए और ये हुआ फिर फिल्म गुड्डी के साथ।

👉शोले ने बना दिया सुपरहिट

असरानी का करियर अब चल पड़ा था। उन्हें एक के बाद एक फिल्में मिल रही थीं। शोर, रास्ते का पत्थर, बावर्ची, सीता और गीता समेत उन्होंने कई फिल्मों में काम किया। बड़ी बात ये थी जो जिस भी फिल्म में काम करते थे उस फिल्म में उनकी एक्टिंग इतनी कमाल होती थी कि मेकर्स उनके लिए कोई ना कोई रोल तक लिख देते थे। इसी बीच काम करते-करते आया साल 1975। ये वो साल था जब असरानी को अपने करियर की सबसे बड़ी फिल्म मिली और वो फिल्म थी शोले। फिल्म शोले में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की जितनी चर्चा हुई, उतनी ही चर्चा असरानी के रोल जेलर की हुई। हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं…इस डायलॉग ने सिनेमा के कोने-कोने में वो गूंज पैदा कर दी कि जिसने भी असरानी को देखा और सुना वो उनकी तारीफ किए बिना खुद को रोक नहीं सका। अमिताभ बच्चन की कई फिल्मों में तो असरानी ने बराबरी की रोल निभाए थे।

👉एक्टिंग के साथ डायरेक्टर भी रहे असरानी

असरानी ने फिल्मों में एक्टिंग के साथ साथ डायरेक्शन की कमान भी संभाली। साल 1977 में उन्होंने एक सेमी बायोग्राफिकल फिल्म ‘चला मुरारी हीरो बनने’ बनाई। हालांकि इस फिल्म को खास तवज्जो नहीं दी गई लेकिन इसके बाद भी असरानी ने हार नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने ‘सलाम मेमसाब’, ‘हम नहीं सुधरेंगे’, ‘दिल ही तो है’ और ‘उड़ान’ जैसी फिल्में बनाई। असरानी ने इसके अलावा पिया का घर, मेरे अपने, परिचय, बावर्ची, नमक हराम, अचानक, अनहोनी जैसी कई बड़ी फिल्मों में काम किया। इन फिल्मों में उनकी एक्टिंग अलग थी, हालांकि दर्शकों ने उन्हें कॉमेडियन के रोल में ज्यादा पसंद किया। यहां तक कि 1972 में आई फिल्म कोशिश और चैताली में असरानी ने निगेटिव किरदार भी निभाया लेकिन दर्शकों के दिमाग उनकी कॉमिक इमेज बन गई और यही उनके लिए सबसे फायदेमंद रहा।

अंग्रेजों के जमाने का वो जेलर तो शायद ही किसी के जेहन से निकल सके

1975 में रिलीज हुई सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ में असरानी ने “जेलर” का किरदार निभाया था. उनके इस किरदार ने दर्शकों को इतना हंसाया कि उनका डायलॉग “हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं…” आज भी पॉपुलर है. असरानी ने यह रोल चार्ली चैपलिन और हिटलर की स्टाइल को मिलाकर निभाया था. उन्होंने खुद बताया था कि उन्होंने यह अंदाज स्क्रिप्ट में नहीं पढ़ा था बल्कि शूटिंग के दौरान खुद तैयार किया था. यही वजह थी कि यह सीन फिल्म के सबसे यादगार दृश्यों में से एक बन गया.

👉राजेश खन्ना के साथ 25 से ज्यादा फिल्में

असरानी ने सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ करीब 25 फिल्मों में काम किया. राजेश खन्ना उन्हें “लकी मैस्कॉट” मानते थे. असरानी ने खुद एक इंटरव्यू में कहा था “जब भी मैं काका (राजेश खन्ना) के साथ फिल्म में होता था, फिल्म चल जाती थी.”

👉पहला ब्रेक और पहचान

(1967-72)
असरानी को पहला बड़ा मौका 1967 में फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ से मिला. इसके बाद उन्होंने ‘गुड्डी’ (1971) और परिचय’ (1972) में शानदार कॉमेडी से पहचान बनाई. इस दौर में असरानी ने बतौर साइड कॉमेडियन खुद को मजबूती से स्थापित कर लिया.

👉असरानी का गोल्डन पीरियड

सुपरहिट्स पर सुपरहिट्स (1972–1985)
इस समय असरानी का करियर चरम पर था. उन्होंने ‘छोटी सी बात’, ‘आज की ताजा खबर’, ‘अभिमान’, ‘बावर्ची’, ‘शोले’, ‘चुपके चुपके’ और ‘रोटी’ जैसी सुपरहिट फिल्मों में कॉमेडी के ऐसे रंग भरे जो आज भी याद हैं. 1975 में ‘शोले’ का जेलर रोल तो आइकॉनिक बन गया, उन्होंने राजेश खन्ना, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन और जया भादुरी जैसे सितारों के साथ लंबा काम किया.

👉असरानी के वो तीन हटकर किरदार

छोटी सी बात (1975) में असरानी ने अशोक कुमार और अमोल पालेकर के बीच ज़बरदस्त कॉमिक सपोर्ट दिया. उनकी टाइमिंग और चेहरे के एक्सप्रेशन बेहतरीन थे. अभिमान (1973) एक सीरियस फिल्म है जिसमें असरानी हल्की-फुल्की कॉमेडी लेकर आते हैं. अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी की इस फिल्म में असरानी का किरदार दर्शकों के लिए सुखद कॉमिक रिलीफ था. रोटी (1974) में असरानी ने अपने एक्सप्रेशन और टोन से हर सीन में मजा भर दिया.