थम गया पलायन ,अब जिले में ही मिल रहा रोजगार,कोसा उद्योग दिखा रहा है आर्थिक मजबूती की राह, महिलाएं कमा रहीं 70 हजार

जिले की दो हजार से अधिक महिलाएं कोसा उत्पादन से जुड़कर हो रही लाभान्वित

कोरबा। आदिवासी बाहुल्य कोरबा जिला (तसर )कोसाफल उत्पादन में हमेशा की तरह पूरे प्रदेश में सिरमौर है। दूरस्थ वनांचलों में रहने वाले ग्रामीणों को कोसा उद्योग आर्थिक मजबूती की राह दिखा रहा है। जिले के 2 हजार से अधिक महिला हितग्राही कोसा उद्योग से जुड़कर आर्थिक लाभ कमा रहीं हैं।

जिले के दूरस्थ जंगलो में निवास करने वाले लोगो के द्वारा कोसा कृमिपालन का काम किया जा रहा है। कोसा कृमि के द्वारा बनाए गए ककून को बेचकर महिलाओ द्वारा आय प्राप्त की जा रही है। उत्पादित कोसा को कोसा धागा के रूप में निकालकर बेचने से महिलाओं को अतिरिक्त लाभ भी हो रही है। जिले में तसर योजना से कोसा उत्पादन के लिए 24 महिला स्वावलंबन समूह एवं मलवरी योजना से 9 महिला स्वावलंबन समूह कोसा उत्पादन के काम में लगी हुई है। तसर क्षेत्र में प्रति हितग्राही तीन फसलो में 60 हजार से 70 हजार रूपए वार्षिक आय प्राप्त की जा रही है। इसी प्रकार मलवरी क्षेत्र में प्रति हितग्राही 50-60 हजार रूपए की आर्थिक लाभ प्राप्त कर रही है।
शासन द्वारा हितग्राहियों को टसर धागाकरण योजना से प्रशिक्षण एवं धागाकरण मशीन निःशुल्क में दी गई है। रेशम विभाग द्वारा पौधरोपण कर तथा नई कृमिपालन तकनीक का प्रशिक्षण हितग्राहियो को दिया जा रहा है जिससे कोसाफल उत्पादन में वृद्वि हो रही है। वेट रीलिंग ईकाई कोरबा के 45 सदस्यो द्वारा कोसा धागा निकालकर 4 से 5 हजार रूपए प्रति सदस्य प्रति माह आय प्राप्त की जा रही है। रेशम विभाग अन्तर्गत तसर कृमिपालन योजना प्रारम्भ होने से ग्राम के कृषक तसर फार्म में ही कोसा कृमिपालन कर आर्थिक आय अर्जित करने में लगे हुए हैं। कोसा उत्पादन का काम अपने आसपास ही मिल जाने के कारण ग्रामीणजनों को रोजगार की तलाश में बाहर नहीं जाना पड़ता है।

साल में ली जाती हैं तीन फसलें,निर्धारित दर पर ककून बैंक करती है खरीदी

सहायक संचालक रेशम  सतीश धर शर्मा ने बताया कि जिले में कोसाफल उत्पादन के लिए साल में तीन फसले ली जाती हैं। कोसाफल का उत्पादन जंगल-फार्म में उपलब्ध तसर कीट खाद्य पौधे साजा और अर्जुन पर होता हैं। पहली फसल का उत्पादन जून में बरसात लगने पर प्रारंभ हो जाता हैं। यह फसल 40 दिन में पूरी हो जाती है। इसी प्रकार माह अगस्त एवं सितम्बर में दूसरी फसल एवं अक्टूबर में तीसरी फसल प्रारंभ की जाती है। जिले में उत्पादित कोसाफल को शासन द्वारा निर्धारित दर में ककून बैंक कटघोरा द्वारा कोसा सहकारी समिति के माध्यम से खरीदा जाता हैं। उत्पादित कोसो से धागाकरण समूहो द्वारा कोसा धागा निकाल कर शासन द्वारा निर्धारित दर पर रीलर्स-बुनकरो को विक्रय किया जाता हैं। बुनकरो द्वारा कोसा रेशम से कपडे तैयार कर आय अर्जित की जाती है। सहायक संचालक ने बताया कि जिले में मलवरी रेशम के अंतर्गत कोसा उत्पादन को बढ़ाने बेहतर प्रयास किये जा रहे हैं। कोसा रेशम उघोग एक बहु आयामी रोजगार मूलक कार्य है। हितग्राहियों द्वारा कोसा कृमिपालन गांव में ही रहकर अच्छी आय अर्जित करने का अच्छा साधन साबित हो रहा है।