नई दिल्ली । केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने वापस लिए जा चुके कृषि कानूनों पर चौंकाने वाला बयान दिया है। महाराष्ट्र के नागपुर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए तोमर ने कहा कि कृषि कानून 70 साल की आजादी के बाद लाया गया सबसे बड़ा रिफॉर्म था। लेकिन कुछ लोगों के विरोध के बाद उसे वापस लेना पड़ा। उन्होंने आगे कहा कि हम एक कदम पीछे जरूर हटे हैं। लेकिन दोबारा आगे बढ़ेंगे। सरकार आगे के बारे में सोच रही है, हम निराश नहीं हैं। किसान भारत की रीढ़ हैं

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर 19 नवंबर 2021 को अपने संबोधन में तीनों कृषि कानून वापन लेने का ऐलान किया था। संसद में कानून वापस लेने के बाद 1 दिसंबर को राष्ट्रपति ने इस पर अंतिम मुहर लगाई। इसे पंजाब और उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले सरकार का बड़ा दांव माना जा रहा है।
एक साल चले आंदोलन में 700 किसानों की जान गई

17 सितंबर 2020 को लागू किए गए तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर देश के इतिहास का सबसे लंबा किसान आंदोलन शुरू हुआ था। पंजाब से सुलगी आंदोलन की चिंगारी पूरे देश में फैल गई थी। हजारों किसानों ने ‘दिल्ली चलो’ अभियान के हिस्से के रूप में कानून को पूरी तरह से निरस्त करने की मांग की और दिल्ली कूच किया था। पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान समेत देश के अन्य राज्यों के किसानों ने 378 दिन तक दिल्ली की घेराबंदी की हुई थी।
हरियाणा में किसानों पर दर्ज केस वापसी की प्रक्रिया शुरू
किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा में किसानों पर दर्ज किए गए मामले वापस लेने की प्रकिया शुरू हो गई है। पहले सरकार ने प्रदेश के सभी जिलों के एसपी और डिस्ट्रिक अटॉर्नी को पत्र लिखकर केसों के संबंध में राय मांगी थी। राय मिलने के बाद अब सरकार ने जिला उपायुक्त को केस वापस लेने के आदेश दे दिए हैं।
हरियाणा में किसानों पर 276 केस दर्ज हैं। इनमें से 4 मर्डर और दुष्कर्म के हैं। ये केस वापस नहीं होंगे। 272 केसों में से 178 की चार्जशीट कोर्ट में है। 57 केस अनट्रेस हैं, इसलिए ये वापस हो जाएंगे। 29 केस रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और 8 की कैंसलेशन रिपोर्ट तैयार है।
इन मुद्दों पर बनी थी सहमति
MSP : केंद्र सरकार कमेटी बनाएगी, जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि लिए जाएंगे। अभी जिन फसलों पर MSP मिल रही है, वह जारी रहेगी। MSP पर जितनी खरीद होती है, उसे भी कम नहीं किया जाएगा।
केस वापसी : हरियाणा, उत्तर प्रदेश सरकार केस वापसी पर सहमत हो गई हैं। दिल्ली और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के साथ रेलवे द्वारा दर्ज केस भी तत्काल वापस होंगे।
मुआवजा: मुआवजे पर भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में सहमति बन गई है। पंजाब सरकार की तरह ही यहां भी 5 लाख का मुआवजा दिया जाएगा।
बिजली बिल: बिजली संशोधन बिल को सरकार सीधे संसद में नहीं ले जाएगी। पहले उस पर किसानों के अलावा सभी संबंधित पक्षों से चर्चा होगी।
प्रदूषण कानून: प्रदूषण कानून को लेकर किसानों को सेक्शन 15 से आपत्ति थी, जिसमें किसानों को कैद नहीं, जुर्माने का प्रावधान है। इसे केंद्र सरकार हटाएगी।कृषि कानून वापसी के प्रधानमंत्री मोदी के ऐलान के बाद किसानों ने धरना स्थल पर जश्न मनाया था।कृषि कानून वापसी के प्रधानमंत्री मोदी के ऐलान के बाद किसानों ने धरना स्थल पर जश्न मनाया था।
तीनों कृषि कानूनों में क्या था?
- द फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन) कानून 2020
कानून में क्या? सरकार के मुताबिक इसमें ऐसा इको-सिस्टम है, जहां किसान मनचाहे स्थान पर फसल बेच सकते हैं। इंटर-स्टेट और इंट्रा-स्टेट कारोबार बिना किसी अड़चन कर सकते हैं। राज्यों के एपीएमसी के दायरे से बाहर भी। इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग से भी अपनी फसल बेच सकते हैं। जिन इलाकों में किसानों के पास अतिरिक्त फसल है, उन राज्यों में उन्हें अच्छी कीमत मिलेगी। इसी तरह जिन राज्यों में शॉर्टेज है, वहां उन्हें कम कीमत में वस्तु मिलेंगी।
आपत्ति क्या? मंडियों से किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिलता था। इससे मार्केट रेगुलेट होता है। राज्यों को मंडी शुल्क के तौर पर आमदनी होती है, जिससे किसानों के लिए बुनियादी सुविधाएं जुटाई जाती हैं। मंडियां खत्म हो गईं, तो किसानों को एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा।
- द फार्मर्स (एम्पॉवरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑफ प्राइज एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस कानून 2020
कानून में क्या? सरकार के मुताबिक खेती से जुड़े रिस्क किसानों के नहीं, बल्कि जो उनसे एग्रीमेंट करेंगे, उन पर शिफ्ट हो जाएंगे। कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को नेशनल फ्रेमवर्क मिलेगा। किसान एग्री-बिजनेस करने वाली कंपनियों, प्रोसेसर्स, होलसेलर्स, एक्सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर्स से एग्रीमेंट कर आपस में तय कीमत पर उन्हें फसल बेच सकेंगे। विवाद होने पर समय सीमा में उसके निपटारे की प्रभावी व्यवस्था होगी। लिखित एग्रीमेंट में सप्लाई, क्वालिटी, ग्रेड, स्टैंडर्ड्स और कीमत से संबंधित नियम और शर्तें होंगी। यदि फसल की कीमत कम होती है, तो भी अनुबंध के आधार पर किसानों को गारंटेड कीमत तो मिलेगी ही। बोनस या प्रीमियम का प्रावधान भी होगा।
आपत्ति क्या? कानून में कीमतों के शोषण से बचाने का वादा तो है, लेकिन कीमतें तय करने का मैकेनिज्म नहीं। डर था कि इससे प्राइवेट कॉर्पोरेट हाउसेस को किसानों के शोषण का जरिया मिल जाएगा। आलोचकों को डर था कि खेती का सेक्टर असंगठित है। ऐसे में कॉर्पोरेट्स से लड़ने की नौबत आने पर संसाधन कम पड़ सकते थे।
- एसेंशियल कमोडिटी (सुधार)
कानून में क्या? इस कानून से कोल्ड स्टोरेज और फूड सप्लाई चेन के आधुनिकीकरण में मदद मिलती। यह किसानों के साथ ही उपभोक्ताओं के लिए भी कीमतों में स्थिरता बनाए रखने में मदद करता। स्टॉक लिमिट तभी लागू होती, जब सब्जियों की कीमतें दोगुनी हो जातीं या खराब न होने वाली फसल की रिटेल कीमत 50% बढ़ जाती। अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेलों, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटाया गया था। इससे उत्पादन, स्टोरेज, मूवमेंट और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म हो जाता। युद्ध, प्राकृतिक आपदा, कीमतों में असाधारण वृद्धि और अन्य परिस्थितियों में केंद्र सरकार नियंत्रण अपने हाथ में ले लेती।
आपत्ति क्या? पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा था कि खाद्य वस्तुओं पर रेगुलेशन खत्म करने से एक्सपोर्टर्स, प्रोसेसर्स और कारोबारी फसल सीजन में जमाखोरी कर सकते हैं। इससे कीमतों में अस्थिरता आएगी। फूड सिक्योरिटी पूरी तरह खत्म हो जाएगी। राज्यों को यह पता ही नहीं होगा कि राज्यों में किस वस्तु का कितना स्टॉक है। इससे आवश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी बढ़ सकती है।