कटघोरा वनमंडल के इस रेंज में भ्रष्टाचार की नींव पर बने 97 लाख का तालाब फूटा ,जानवरों की प्यास बुझाने स्वीकृत योजना का किया बेड़ागर्क,जानें क्या कहते हैं जिम्मेदार

कोरबा-पाली। कटघोरा वनमंडल में पूर्ववर्ती शासनकाल में के दौरान कराए गए कार्यों में भ्रष्टाचार के नित नए मामले उजागर हो रहे। जिम्मदारों के प्रश्रय की वजह से लाखों – करोड़ों की योजनाएं भ्रष्टाचार का प्रमाण दे रही हैं। जंगली जानवरों को गर्मी के सितम से बचाने उनकी प्यास बुझाने के उद्देश्य से पीडी मद के 97 लाख की लागत से भ्रष्टाचार की नींव पर बनाए गए तालाब पहली ही बारिश में बह गया। जवाबदेह अधिकारी निर्माण कार्य पूर्ण नही होने की बात कह रहे हैं।

ग्रीष्मकालीन समय मे पानी की तलाश में वन्यप्राणियों को भटकना न पड़े और जंगल छोड़ रिहायशी इलाकों की ओर रुख न कर सकें, इसके लिए पाली वन परिक्षेत्र के मुरली सर्किल अंतर्गत रतिजा बीट के कक्ष क्रमांक- 599, रतिजा व अंडीकछार के जंगल मे पोस्ट डिपोजिट फंड से 97 लाख के 3 तालाब निर्माण की स्वीकृति मिली। जिन तालाबों को 3 माह पहले विभाग ने बनवाया। लेकिन वन्यप्राणियों को गर्मी से बचाने के लिए उठाया गया यह कदम विफल साबित हो गया। ऐसा इसलिए क्योंकि भ्रष्ट्राचार से निर्मित तालाबों ने पहले ही बारिश में दम तोड़ दिया। रतिजा में निर्मित तालाब का बारिश के पानी से मेढ़ फूट गया व पिचिंग भी बह गया। ग्रामीण दुबराज सिंह ने बताया कि उक्त तालाब निर्माण में एक से डेढ़ मीटर खोदाई का कार्य मशीन के माध्यम से कराया गया है। जिसमे नियमों को ताक पर रखकर पानी निकासी के लिए बनाए गए उलट नाला से तालाब का पानी नही निकल पाने के नतीजतन भराव के दबाव में मेढ़ के बीचोबीच का एक बड़ा हिस्सा फूट कर बह गया। वहीं इस तालाब निर्माण में पानी ठहराव के लिए एक ही मेढ़ तैयार किया गया है। ग्रामीणों का आरोप है कि वन्य प्राणियों के लिए तालाब निर्माण की आड़ में सरकारी धन से घटिया काम कर अधिकतर राशि का गबन किया गया है। इसी प्रकार अंडीकछार के जंगल मे बने 2 अन्य डबरीनुमा तालाब भी बारिश से क्षतिग्रस्त हो गए है। जिन निर्माण को देखकर लगता कि स्वीकृत 97 लाख की राशि आधी भी खर्च नहीं हुई होगी ।
इस तरह वन विभाग द्वारा लाखों रुपए से निर्मित भ्रष्ट्राचार का तालाब पानी मे बह गया। कटघोरा वनमंडल में जनता के पैसे का दुरुपयोग आखिर कब रुकेगा और भ्रष्ट्र अधिकारियों पर आखिर नकेल कब कसेगा यह तो दुनिया का सृजन करने वाले विधाता को ही अब पता होगा।

अधिकारी ही ठेकेदार ,इंजीनियर बन निर्माण कार्यों में बरतते हैं अनियमितता

वन विभाग में होने वाले निर्माण कार्यों का पूरा लेखा- जोखा अधिकारियों को ही देखना होता है। चाहे डब्ल्यूबीएम सड़क निर्माण, रपटा, पुल- पुलिया, स्टापडेम या कोई भी निर्माण कार्य हो वह विभाग के अधिकारी ही सर्वेसर्वा ठेकेदार से लेकर इंजीनियर तक होते है। उन्हें इसीलिए किसी बात का कोई डर नही होता है और निर्माण कार्यों में जमकर अनियमितता को अंजाम देते है, क्योंकि इस विभाग के अधिकारियों को यह बात अच्छे से पता है कि उनके द्वारा कराए गए कार्यों की सत्यापन करने वाले वे ही होंगे। यदि कराए गए कार्यों पर कोई गड़बड़ी दिखती है या कुछ खुलकर सामने आता है तो उस काम को दोबारा मरम्मत के नाम पर योजना के तहत फिर से राशि निकाली जाती है।

निर्माण कार्यों के जानकारी से संबंधित नही लगाते साइन बोर्ड

किसी भी शासकीय निर्माण मे निर्माण स्थल पर कार्य से संबंधित सूचना (साइन)बोर्ड लगाना अनिवार्य होता है, जिससे पता चल सके कि जो कार्य अमुक जगह पर हो रहे अथवा हुए हैं वह कौन से योजना, कितने लागत की है। लेकिन वन विभाग के अधिकतर निर्माण कार्यों के सूचना बोर्ड नही लगाए जाते ताकि कार्य के स्वीकृत राशि के बारे में किसी को जानकारी न हो सके और विभाग के भ्रष्ट्राचारियों द्वारा अपने मनमौजी से कारनामा करते हुए निर्माण कार्य पूर्ण करके पैसे आहरण कर लिया जाता है। जिसमे बिना ऊपरी संरक्षण इस तरह के भ्रष्ट्राचार संभव नही।

मामले में जानें क्या कहते हैं जिम्मेदार ?

इस बारे में वन विभाग के उप वनमंडलाधिकारी चंद्रकांत टिकरिया से बात की गई तो उन्होंने कहा कि तालाब निर्माण का काम सही तरीके से हुआ है। पानी के दबाव के कारण मेढ़ का हिस्सा बहा है, जिसे सुधार कर लिया जाएगा व निर्माण कार्य अभी बांकी है। अब यहां पर एक बात समझ से परे है कि तालाब का निर्माण तो बारिश के पहले पूर्ण कर लिया जाता है, ताकि उसमे बारिश के पानी का भराव होने के साथ इसका लाभ मिल सके। लेकिन वन विभाग का यह कैसा तालाब जो बारिश में भी अधूरा है। ऐसे में जिस उद्देश्य को लेकर इसका निर्माण हुआ है, उसका लाभ मिलने में संचय है।