प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आकाशवाणी से मन की बात कार्यक्रम में आज विश्व नदी दिवस के उपलक्ष्य में नदियों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ”पिबन्ति नद्य:, स्वय-मेव नाम्भ: यानि नदियां अपना जल खुद नहीं पीती, बल्कि परोपकार के लिए देती हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आकाशवाणी से मन की बात कार्यक्रम में आज विश्व नदी दिवस के उपलक्ष्य में नदियों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ”पिबन्ति नद्य:, स्वय-मेव नाम्भ: यानि नदियां अपना जल खुद नहीं पीती, बल्कि परोपकार के लिए देती हैं। उन्होंने कहा कि नदियां एक भौतिक वस्तु नहीं बल्कि एक जीवंत इकाई है इसलिए भारतीय परंपरा में इसे मां कहा जाता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में लोग माघ के महीने में गंगा और अन्य नदियों के किनारे कल्पवास करते हैं। देश में स्नान करते समय श्लोक बोलने की परम्परा रही है। श्री मोदी ने कहा कि भारत की कई परंपराएं जल संरक्षण से भी जुड़ी हैं। आज जिसे कैच द रेन कहते हैं उसे हम कई परंपराओं और अनुष्ठानों के जरिए करते आए हैं। इसका एक उदाहरण छठ पूजा के लिए नदियों के किनारे मरम्मत और घाटों की सफाई किया जाना है। नदियों को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए सबके प्रयास और सबके सहयोग से नमामि गंगे कार्यक्रम आगे बढ़ रहा है।
प्रधानमंत्री ने इन दिनों चल रही एक ई-नीलामी का उल्लेख किया, जिसके अंतर्गत उन्हें विभिन्न अवसरों पर दिये गये उपहारों की नीलामी की जा रही है। उन्होंने बताया कि इस नीलामी से मिलने वाली राशि को नमामि गंगे अभियान के लिए खर्च किया जाएगा।
प्रधानमंत्री ने नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार और समाज सेवी संगठनों के प्रयासों का भी जिक्र किया। उन्होंने बताया कि तमिलनाडु के वेल्लोर और तिरूवन्नामलाई जिले में बहने वाली नागनदी जो कई वर्षों से सूख गई थी, कुछ महिलाओं ने जनभागाीदारी से इसे पुनर्जीवित किया।
श्री मोदी ने साबरमती नदी को नर्मदा नदी से जोड़कर फिर से लबालब भरने के स्थानीय लोगों के प्रयासों की भी सराहना की। प्रधानमंत्री ने नौजवानों से छोटे-छोटे प्रयास करके बड़ी – बड़ी उपलब्धियां हासिल करने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन से सीख लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने स्वच्छता को जन आंदोलन बनाकर आजादी के आंदोलन को ऊर्जा दी।