रायपुर – को दुर्लभ प्रजाति का उल्लू देखने को मिला। इसका रैस्क्यू 5 दिसंबर की प्रात: पैदल गस्त के दौरान चिल्फी परिक्षेत्र के लोहारा टोला परिसर के कक्ष क्रमांक पी 328 में वन विभाग की टीम ने किया। वन विभाग की टीम को यहां दुर्लभ प्रजाति के दो बार्न उल्लूू मिले। इन दोनों उल्लुओं को कुत्तों ने घेर रखा था। वन विभाग की टीम ने इन्हें कुत्तों से बचाते हुए रेस्क्यू किया गया। वन्य प्राणी पशु चिकित्सक डॉ राकेश वर्मा तथा डॉ सोनम मिश्रा के नेतृत्व में रेस्क्यू किए गए बार्न उल्लुओं को प्राथमिक उपचार तथा भोजन व्यवस्था का प्रबंध वन विभाग की टीम द्वारा किया गया है। बार्न उल्लूू दुर्लभ प्रजाति का पक्षी हैं जिनको वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल 3 में स्थान दिया गया है। बार्न उल्लू की औसत आयु 4 वर्ष होती है। ऐसे भी उदाहरण हैं जिसमें बार्न उल्लूू 15 वर्ष तक जीवित रहे हैं। कैप्टिव ब्रीडिंग में बार्न उल्लू 20 वर्ष तक जीवित रह जाते हैं। प्राकृतिक अवस्था में जंगलों में 70 प्रतिशत बार्न उल्लू अपने जन्म के प्रथम वर्ष में ही प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। राज्य तथा देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि बार्न उल्लूू को पवित्र मानते हैं, जिससे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली तथा उन्नति होती है। बार्न उल्लूू को तथा उनके शरीर के विभिन्न अंगों को तंत्र मंत्र में भी उपयोग किया जाता है। भोरमदेव अभ्यारण के चिल्फी परिक्षेत्र में रेस्क्यू किए गए बार्न उल्लूू प्रजाति के दोनों पक्षियों को बचाने में प्रशिक्षु भारतीय वन सेवा के अधिकारी गणेश यू.आर., परिक्षेत्र सहायक चिल्फी पूर्व देशमुख तथा स्थानीय वनरक्षक का महत्वपूर्ण योगदान रहा।