एजेंसी। रुस और यूरोप के बीच शक्ति संतुलन हमेशा से एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक विषय रहा है। यूक्रेन युद्ध के बाद से यह संघर्ष और अधिक जटिल हो गया है। पश्चिमी यूरोप, अमेरिका के सहयोग से रूस के खिलाफ मजबूती से खड़ा रहा है, लेकिन अगर अमेरिका अपना समर्थन वापस ले लेता है, तो यह पूरे शक्ति समीकरण को प्रभावित कर सकता है।
इस लिहाज से 1 मार्च 2025 को विश्व राजनीति का एक बड़ा दिन माना जा सकता है। इस दिन यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच व्हाइट हाउस में तीखी नोकझोंक हुई। यह घटना न केवल यूक्रेन-अमेरिका संबंधों के लिए एक झटका थी, बल्कि यूरोप और रूस के बीच शक्ति संतुलन पर भी सवाल उठाती है। यदि अमेरिका यूक्रेन का समर्थन बंद कर देता है, तो क्या यूरोप अकेले रूस के खिलाफ खड़ा हो सकता है? आइए विस्तार से समझते हैं।
यूरोप और रूस: शक्ति की तुलना👇
यूरोप और रूस की शक्ति को समझने के लिए हमें आर्थिक, सैन्य और जनसंख्या के आंकड़ों पर नजर डालनी होगी। यूरोपीय संघ (ईयू) में 27 देश शामिल हैं, जिनकी कुल जनसंख्या लगभग 45 करोड़ (450 मिलियन) है, जबकि रूस की जनसंख्या करीब 14.3 करोड़ (143 मिलियन) है। यह अंतर अपने आप में यूरोप को एक बड़ा मानव संसाधन आधार प्रदान करता है।
आर्थिक रूप से, ईयू का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) लगभग 20 ट्रिलियन डॉलर है, जो रूस के 2 ट्रिलियन डॉलर के जीडीपी से लगभग दस गुना अधिक है। औद्योगिक उत्पादन में भी यूरोप का दबदबा है, जो रूस से पांच गुना अधिक है। सैन्य खर्च की बात करें तो ईयू देश सामूहिक रूप से प्रतिवर्ष 279 अरब डॉलर खर्च करते हैं, जबकि रूस का सैन्य बजट 109 अरब डॉलर के आसपास है। सैन्य बल के संदर्भ में, यूरोप के पास 19 लाख सैनिक हैं, जबकि रूस के पास लगभग 10 लाख सक्रिय सैनिक हैं। यूरोपियन देशों के पास नाटो (NATO) का सामूहिक समर्थन है, जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और अन्य देश शामिल हैं। कुल मिलाकर यूरोपीय देशों के पास लगभग 20 लाख सक्रिय सैनिक हैं, लेकिन उनकी सैन्य रणनीति और हथियार रूस की तुलना में बिखरे हुए हैं।
हालांकि, ये आंकड़े पूरी कहानी नहीं बताते। रूस के पास परमाणु हथियारों का विशाल भंडार है। उसके पास लगभग 5,580 परमाणु हेड्स हैं, जो दुनिया में सबसे बड़ा है। दूसरी ओर, यूरोप में केवल फ्रांस (290 हेड्स) और यूनाइटेड किंगडम (225 हेड्स) के पास ही परमाणु हथियार हैं, जो नाटो ढांचे के तहत संचालित होते हैं। इसके अलावा, रूस की सैन्य रणनीति और भौगोलिक स्थिति उसे यूक्रेन जैसे पड़ोसी देशों पर दबाव बनाने में लाभ देती है।
यूरोप की एकता सबसे बड़ी चुनौती 👇
यूरोप की शक्ति कागज पर प्रभावशाली है, लेकिन इसकी असली ताकत इसके देशों की एकता पर निर्भर करती है। ईयू में नीतिगत मतभेद और सैन्य समन्वय की कमी एक बड़ी कमजोरी रही है। उदाहरण के लिए, जर्मनी और फ्रांस जैसे देश यूक्रेन को हथियार देने में सक्रिय रहे हैं, लेकिन हंगरी जैसे देश रूस के साथ नरम रुख अपनाते हैं। यदि यूरोप को रूस के खिलाफ एकजुट होना है, तो उसे न केवल सैन्य खर्च बढ़ाना होगा, बल्कि एक साझा रक्षा नीति पर सहमति भी बनानी होगी।
ईयू की विदेश नीति प्रमुख काजा कैलास ने हाल ही में कहा, “मुक्त दुनिया को एक नए नेता की जरूरत है, और यह जिम्मेदारी अब यूरोप की है।” यह बयान ट्रम्प-जेलेंस्की विवाद के बाद यूरोपीय नेताओं की बढ़ती चिंता को दर्शाता है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मनी के निवर्तमान चांसलर ओलाफ शोल्ज और पोलैंड के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टस्क जैसे नेताओं ने यूक्रेन के प्रति समर्थन की प्रतिबद्धता दोहराई है। लेकिन क्या यह समर्थन रूस को रोकने के लिए पर्याप्त होगा?
अमेरिकी समर्थन के बिना यूक्रेन का भविष्य क्या होगा?👇
अमेरिका ने पिछले तीन वर्षों में यूक्रेन को कथित तौर पर 300 अरब डॉलर की सहायता दी है, जिसमें हथियार, प्रशिक्षण और आर्थिक मदद शामिल है। ट्रम्प ने इस समर्थन को “अमेरिकी करदाताओं पर बोझ” करार दिया और जेलेंस्की को चेतावनी दी कि “या तो सौदा करो, वरना हम बाहर हैं।” यदि अमेरिका पीछे हटता है, तो यूक्रेन की स्थिति नाजुक हो जाएगी।
यूक्रेन की सेना रूसी आक्रमण के खिलाफ मजबूती से लड़ रही है, लेकिन अमेरिकी हथियार जैसे हिमार्स रॉकेट सिस्टम और पैट्रियट मिसाइलें इसके प्रतिरोध का आधार हैं। बिना इस समर्थन के, यूक्रेन के पास गोला-बारूद और उन्नत तकनीक की कमी हो सकती है, जिससे रूस को पूर्वी यूक्रेन में और बढ़त मिल सकती है। जेलेंस्की ने जोर देकर कहा है कि वह “पुतिन के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे” जब तक कि यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी न मिले। लेकिन अमेरिका के बिना, ये गारंटी देना यूरोप के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
यूरोप की भूमिका और संभावित नतीजा👇
यदि अमेरिका समर्थन वापस लेता है, तो यूरोप के पास तीन विकल्प होंगे। पहला, वह अपनी सैन्य और आर्थिक सहायता को तेजी से बढ़ाए। दूसरा, वह यूक्रेन को रूस के साथ समझौता करने के लिए मजबूर करे, जिसमें क्षेत्रीय रियायतें शामिल हो सकती हैं। तीसरा, वह निष्क्रिय रहे, जिससे रूस अपने मन मुताबिक यूक्रेन पर कब्जा कर सकता है।
पहला विकल्प सबसे संभावित लगता है, क्योंकि यूरोपीय नेता पहले ही “यूक्रेन के साथ खड़े होने” का संकल्प ले चुके हैं। लेकिन इसके लिए यूरोप को अपने सैन्य उत्पादन को बढ़ाना होगा और नाटो के ढांचे में और निवेश करना होगा। दूसरा विकल्प यूक्रेन के लिए अपमानजनक होगा और यूरोप की विश्वसनीयता को कम करेगा। तीसरा विकल्प सबसे खतरनाक है, क्योंकि यह रूस को बाल्टिक देशों या पोलैंड जैसे अन्य क्षेत्रों में आक्रमण के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
कुल मिलाकर पूरे यूरोप की सामूहिक शक्ति रूस से कहीं अधिक है, लेकिन इस शक्ति का उपयोग एकता और राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। अमेरिकी समर्थन के बिना, यूक्रेन का संघर्ष कठिन हो जाएगा, और यूरोप को अपनी रक्षा और सहयोगियों की सुरक्षा के लिए आगे आना होगा। ट्रम्प-जेलेंस्की विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब यूरोप के लिए “अमेरिकी छतरी” पर निर्भर रहने का समय खत्म हो गया है। यदि यूरोप एकजुट होकर कार्य करता है, तो वह न केवल यूक्रेन को बचा सकता है, बल्कि रूस को यह संदेश भी दे सकता है कि आक्रामकता का जवाब मिलेगा। यह एक निर्णायक क्षण है- यूरोप या तो उभरेगा या कमजोर पड़ जाएगा।