कोरबा । भूमि और उस पर निर्मित मकान के स्वामित्व को लेकर न्यायालय ने अहम फैसला सुनाया है। वादी के द्वारा लाए गए वाद को न्यायालय ने विचारण उपरांत निरस्त कर दिया है। न्यायालय ने कहा है कि मात्र टैक्स या अन्य कर भुगतान से स्वामित्व सिद्ध नहीं होता। चूंकि स्वामित्व ही नहीं है तो वसीयत का निष्पादन भी न्यायालय ने वैध नहीं माना है। इस आधार पर पिता के विरुद्ध पुत्र रामरतन अग्रवाल का दावा खारिज कर दिया गया।

मामला कोरबा शहर के अग्रसेन चौक स्थित संपत्ति का है। यहां ओम प्रकाश अग्रवाल पिता स्व. दुलीचंद अग्रवाल के नाम से खसरा नंबर 890/10 रकबा 0.10 एकड़ भूमि स्थित है। उपरोक्त वाद भूमि के स्वत्व की घोषणा एवं स्थाई निषेधाज्ञा बाबत् श्रीमती शरबती देवी अग्रवाल पति स्व. जयमल राम अग्रवाल एवं इनकी मृत्यु उपरांंत आम मुख्तियार रामरतन अग्रवाल पिता ओमप्रकाश अग्रवाल द्वारा न्यायालय में वाद लाया जाकर शरबती देवी के स्वामित्व व कब्जे पर हस्तक्षेप करने से रोकने व स्थाई निषेधाज्ञा पारित करने अपने पक्ष रखे।
प्रतिवादी ओमप्रकाश ने अधिवक्ता रविंद्र परासर के माध्यम से पक्ष रखा कि उसके दादा ने उसके नाबालिग अवस्था में इसके (ओमप्रकाश के) नाम पर खसरा नं. 890/10 रकबा 0.10 एकड़ भूमि खरीदी और वर्ष 1959 से लगातार राजस्व प्रपत्रों में उसके (ओमप्रकाश) नाम पर दर्ज है। प्रस्तुत संबंधित दस्तावेजों का न्यायालय ने गहन परीक्षण किया।
न्यायालय ने दावा विचारण के प्रकाश मेें न्यायदृष्टांत बलवंत सिंह बनाम दौलत सिंह (1997) एससीसी 137 एवं सूरजभान बनाम वित्तीय आयुक्त (2007) एससीसी 186 का भी अवलोकन किया। इन समस्त तथ्यों के आधारों पर न्यायाधीश ने आदेश किया कि टैक्स एवं अन्य कर के भुगतान एवं राजस्व अभिलेख में उसका नाम दर्ज होने मात्र से उसे वाद गृह भूमि के संबंध में कोई स्वत्व संबंधी अधिकार अर्जित नहीं होता है। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 59 में स्पष्ट है कि कोई भी स्वस्थ चित्त और व्यस्क व्यक्ति अपने द्वारा अर्जित की गई संपत्ति को वसीयत कर सकता है। वसीयत के प्रावधानों में सबसे अधिक महत्व इस बात का है कि केवल वही संपत्ति वसीयत कर सकता है जो स्वयं अर्जित की है, वह अपनी पैतृक संपत्ति को वसीयत नहीं कर सकता। इस तरह वादिनी शरबती देवी को वादग्रस्त भूमि पर कोई स्वत्वाधिकार नहीं है, जिसमें उसके द्वारा कोई भी वैध वसीयत का निष्पादन नहीं किया जा सकता है। चूंकि वादी रामरतन अग्रवाल वादग्रस्त भूमि पर कोई भी स्वत्व संबंधी अधिकार प्रमाणित करने में असफल रहा है, जिसके कारण किसी भी प्रकार का स्थाई निषेधाज्ञा प्राप्त करने का भी वह विधिक अधिकार नहीं रखता। इस तरह तृतीय व्यवहार न्यायधीश वर्ग-1 पीठासीन अधिकारी के न्यायालय में विचारित व्यवहार वाद स्वीकार करने योग्य नहीं होने से प्रस्तुत दावा 21 सितम्बर 2021 को जारी आदेश में निरस्त किया गया। प्रकरण में प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता रविंद्र पराशर ने पैरवी की।